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षड्दर्शन समुच्चय भाग-२, परिशिष्ट-१, जैनदर्शन का विशेषार्थ
३९७/१०२० अपर्याप्तपन में श्वासोच्छ्वास, वचनबल और मनबल ये तीन प्राण नहीं होते इसलिए सम्मूर्छिम मनुष्य को भी ७ प्राण होते हैं, क्योंकि, सम्मूर्छिम मनुष्य तो निश्चय से अपर्याप्त ही होता है और किसी ग्रंथो में ७-८-९ प्राण कहे है, वह अपेक्षा भेद से संभवित है।
अजीव के चौदह भेद : तीन तीन भेदोवाले धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय, उपरांत काल और स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु (ये) चौदह प्रकार से अजीव (तत्त्व) हैं ।(9)
विशेषार्थ : यहाँ अजीव अर्थात् जीव रहित (=जड) ऐसे पांच पदार्थ जगत में विद्यमान हैं । उसमें १. धर्मास्तिकाय द्रव्य २. अधर्मास्तिकाय द्रव्य, ३. आकाशास्तिकाय द्रव्य, ४. काल द्रव्य और ५. पुद्गलास्तिकाय द्रव्य, ये पाँचो अजीव द्रव्य का किंचित् स्वरूप आगे नवतत्त्व की ९वीं गाथा के अर्थ में आयेगा । और यहाँ तो अजीव के केवल १४ भेद ही बताये हैं । वह इस प्रकार___धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय ये ३ द्रव्य के स्कंध, देश और प्रदेश ऐसे ३-३ भेद होने से ९ भेद होते हैं, उसमें काल का १ भेद गिनने से १० भेद होते हैं और स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु ये ४ भेद पुद्गल के मिलाने से पांच अजीव के १४ भेद होते है ।
यहाँ जो द्रव्य को, अस्ति अर्थात् प्रदेशो का काय अर्थात् समूह हो, वह अस्तिकाय कहा जाता हैं । काल तो केवल वर्तमान समयरूप १ प्रदेशवाला होने से, प्रदेश समूह के अभाव में काल को अस्तिकाय नहीं कहा जाता, इसलिए अस्तिकाय द्रव्य तो जीव सहित पाँच द्रव्य है, उस कारण से सिद्धान्त में पंचास्तिकाय शब्द प्रसिद्ध है। उपरांत जो द्रव्य, अस्तिकाय अर्थात प्रदेशो के समूहवाला हो, उसके ही स्कंध-देश-प्रदेशरूप तीन भेद पड सकते है और काल १ समय रूप होने से काल का १ ही भेद कहा हैं । अब स्कंध, देश और प्रदेश के अर्थ नीचे बताये अनुसार हैं । ___ वस्तु का(10) संपूर्ण भाग वह स्कंध, उस स्कंध की अपेक्षा से न्यून सविभाज्य भाग वह देश और निर्विभाज्य(11) भाग कि जो एक अणु जितना ही सूक्ष्म हो । परन्तु यदि स्कंध के साथ प्रतिबद्ध हो तो प्रदेश (और वही सूक्ष्मनिर्विभाज्य भाग यदि स्कंध से अलग हो तो परमाणु) कहा जाता है । यहाँ स्कंध, देश और प्रदेश ये तीनो व्यपदेश (कथन) स्कंध में ही होते है, यदि देश और प्रदेश स्कंध से अलग हो तो देश-प्रदेश नहीं कह सकते । क्योंकि स्कंध से अलग हुआ देश पुनः स्कंध ही कहा जाता है और अपेक्षा से देश भी कहा जाता हैं, परन्तु विशेष से तो स्कंध ही कहा जाता हैं और स्कंध से अलग पडा हुआ प्रदेश परमाणु माना जाता हैं ।
(इस प्रकार धर्मास्तिकाय का स्कंध संपूर्ण २४ राजलोक प्रमाण हैं, देश उससे कुछ न्यून वह यावत् द्विप्रदेश पर्यन्त और एक-एक प्रदेशरूप वह प्रदेश । उस तरह से अधर्मास्तिकाय के स्कंध, देश और प्रदेश रूप तीन-तीन भेद अपने अपने स्कंध में हैं और परमाणु तो केवल पुद्गल द्रव्य का अलग ही होता हैं ।)
9. धम्माधम्मागासा, तियतिय-भेया तहेव अद्धा य । खंधा देस पएसा, परमाणु अजीव चउदसहा ।।८।। (नव.प्र.) 10. वस्तु का पूर्ण
भाग अर्थात् संपूर्ण भागरूप स्कंध दो प्रकार से होता हैं । १. स्वाभाविक स्कंध और २. वैभाविक स्कंध । उसमें स्वाभाविक स्कंध वह जीव, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय का (मैं) हमेशां होता हैं, क्योंकि उन पदार्थो के कभी भी विभाग नहीं पड सकते हैं और पुद्गल द्रव्य का (विकाररूप) वैभाविक स्कंध होता हैं, जैसे १ महाशिला वह पूर्ण स्कन्ध हैं और उसके चार खंड होने से प्रत्येक खंड को भी स्कंध कहा जा सकता हैं । ऐसे यावत् दो परमाणुओं के पिण्ड (द्विप्रदेशी) तक के प्रत्येक पिण्ड को (स्कंध को) भी स्कंध कहा जा सकता हैं । 11. निर्विभाज्य अर्थात् केवलि भगवान भी जो सूक्ष्म अंश के बाद में दो विभाग की कल्पना नहीं कर सकते, ऐसा अति जघन्य भाग और वह भाग परमाणु जितना अथवा परमाणु रूप ही होता हैं ।
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