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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
शब्द:
तच्चाकाशादावमूर्ते नास्ति । अतो न तद्गुणः तथा प्रतीपयायित्वात् " -1, पर्वतप्रतिहतप्रस्तरवत् । तथा शब्दो नाम्बरगुण: F-2, द्वारानुविधायित्वात्, आतपवत्। तस्मिन्नेव पक्षे सति दर्शनसाधनपञ्चकं प्रपञ्च्यते । यथा शब्दोऽम्बरगुणो न भवति संहारसामर्थ्यात् अगरुधूपवत्, तथा वायुना प्रेर्यमाणत्वात् तृणपर्णादिवत्, सर्वदिग्गाह्यत्वात् प्रदीपवत्, अभिभवनीयत्वात्, तारासमूहादिवत्, अभिभावकत्वात् सवितृमण्डलप्रकाशवत् । शब्देनाल्पीयानभिभूयते शब्द इति प्रतीतमेव, तस्मात्पुद्गलपरिणामः शब्दः । अथ शङ्खे तद्विनाशे तदीयखण्डेषु च यथा पौद्गलिकत्वाद्रूपमुपलभ्यते, तथा शब्देऽपि कुतो नेति चेत् ?, उच्यते, सूक्ष्मत्वात्, विध्यातप्रदीपशिखारूपादिवत् गन्धपरमाणुव्यवस्थितरूपादिवद्वेति । गन्धादीनां तु पुद्गलपरिणामता प्रसिद्धैव ।
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व्याख्या का भावानुवाद :
पुद्गलो की प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम से सिद्धि जानना । उसमें घट, पट, चटाई, बैलगाडी इत्यादि पौद्गलिक पदार्थ प्रत्यक्षसिद्ध है । पुगल अनुमान से इस तरह से मालूम होता है
घटपटादि स्थूलवस्तुओ को देखकर, अन्यथा अनुपपत्ति से सूक्ष्म परमाणु और द्वयणुकादि की सत्ता अनुमान से सिद्ध होती है। अर्थात् जगत में स्पष्टतया दिखाई देता स्थूलपदार्थ सूक्ष्मपरमाणु और द्व्यणुकादि की सत्ता के बिना संगत होते नहीं है। इसलिए स्थूल पदार्थो के दर्शन से परमाणु इत्यादि की सत्ता अनुमान से सिद्ध होती है ।
पुद्गल आगम से भी सिद्ध है। पहले बताये “पुग्गलत्थिकाए" इत्यादि आगम वचन से पुद्गलास्तिकाय की सत्ता सिद्ध होती है ।
सभी परमाणु भी एक स्वरुपवाले ही है। परंतु वैशेषिको के अभिमत चार स्वरुपवाले नहीं है। वैशेषिको ने परमाणुओ की चार जातियां मानी है। पार्थिवजाति के परमाणुओ में रुपादि चारो भी गुण होते है। जलीय जातिवाले परमाणुओ में गंध के सिवा रुपादि तीन गुण होते है। अग्नि जाति के परमाणुओ में रुप और स्पर्श गुण ही होता है। वायु जातिवाले परमाणुओ में मात्र स्पर्श गुण ही होता है। वैशेषिको ने ये चार जातिवाले परमाणुओ को माना है। (यही बात को न्यायसूत्र में बताई है । " कथं तर्हि इमे गुणा विनियोक्तव्या इति । एकैकश्येनोत्तरोत्तरगुणसद्भावादुत्तराणां तदनुपलब्धिः " न्यायसू. ३।१।६७ ) उनकी यह मान्यता असंगत और प्रमाणशून्य है ।
जैसे नमक और हींग श्रोत्र के सिवा चारो इन्द्रियो से ग्राह्य होने पर भी जब यह पानी में विलीन होता है। तब परिणाम विशेष के कारण (अर्थात् विशेष प्रकार का परिणाम उत्पन्न होने से ) चक्षु और स्पर्शन इन्द्रियो के द्वारा ग्राह्य नहीं बन सकता है। इस अनुसार से एकजातीय भी पार्थिव इत्यादि के परमाणु परिणाम
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