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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५२, जैनदर्शन
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यहाँ व्रत, तप धारण करने विषयक सत्त्व की बात है, वह सत्त्व तो अत्यंत दुःख से धारण किया जा सके, वैसे शील को धारण करनेवाली स्त्रीयों में भी संभवित है। इसलिए स्त्रीयों को चारित्र का असंभव नहीं है, इसलिए स्त्रीयों में पुरुषो से हीनत्व नहीं है।
पूर्वपक्ष (दिगंबर): साधारण तप, व्रत आदि स्वरुप चारित्र स्त्रीयों को चाहे हो, परंतु परमप्रकर्ष प्राप्त यथाख्यात = स्वरुपस्थिति नाम का चारित्र स्त्रीयों को नहीं हो सकता। (जब कि पुरुषो को यथाख्यातचारित्र प्राप्त होता है।) इसलिए स्त्रीयां पुरुष से हीन ही है।
उत्तरपक्ष (श्वेतांबर): आपने स्त्रीयों में चारित्र के परमप्रकर्ष का अभाव कहा उसमें बाधक क्या है? (१) क्या आवश्यक कारण के अभाव की वजह से होता है ? या (२) क्या कोई विरोधी कारण के संभव से होता है?
उसमें प्रथमपक्ष उचित नहीं है। क्योंकि सामान्य कक्षा के चारित्र का अभ्यास ही परमप्रकर्ष पर्यन्त यथाख्यातचारित्र का कारण बनता है और सामान्य कक्षा के चारित्र का सद्भाव स्त्रीयों में होता है। उसका समर्थन पहले नजदीक में किया ही है। इसलिए चारित्र के परम प्रकर्ष के कारणभूत अभ्यास कोटी के चारित्र का स्त्रीयों में निषेध किया जा सकता न होने से चारित्र के परमप्रकर्ष का अभाव नहीं कहा जा सकता।
द्वितीय पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि छद्मस्थो को यथाख्यातचारित्र अतीन्द्रिय होने से अत्यंत परोक्ष है और अत्यंत परोक्ष वस्तु में, उस वस्तु का किसके साथ विरोध है, उसका निर्णय अल्पज्ञानवाले हम नहीं कर सकते है।
इसलिए चारित्र के अभाव से स्त्रीयों में हीनत्व सिद्ध नहीं किया जा सकता। (१)
"विशिष्ट सामर्थ्य के असत्त्व (अभाव) के कारण स्त्रीयां पुरुषो से हीन होती है।" यह पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि आप हमे जवाब दिजीये कि स्त्रीयों में जो विशिष्टसामर्थ्य का अभाव कहा है वह, (१) क्या स्त्रीयां सातवीं नरक पृथ्वी में जाने के लिए अयोग्य होने के कारण कहा है? या (२) वाद इत्यादि लब्धि से रहित होने के कारण कहा है ? या (३) अल्पश्रुत होने से कहा है ?" उसमें प्रथम पक्ष उचित नहीं है, क्योंकि क्या स्त्रीयां जिस जन्म में मोक्ष में जाती है,उसी जन्म में सातवीं नरक में जाने के लिए अयोग्य होती है ? या सामान्यरुप से किसी भी जन्म में वह सातवीं नरक में जाने अयोग्य होती है ?
यदि "स्त्रीयां जिस जन्म में मोक्ष में जाती है, उसी जन्म में सातवीं नरक में जाने के लिए अयोग्य होती है" ऐसा कहोंगे तो पुरुष भी जिस जन्म में मोक्ष में जाता है उस जन्म में सातवीं नरक में जाने के लिए अयोग्य होता है। (इसलिए पुरुषो को भी असमर्थ = हीन मानना पडेगा और) इसलिए पुरुषो की मुक्ति का भी अभाव हो जायेगा। (अब दूसरे पक्ष की अनुचितता बताने से पहले दिगंबरो का आशय स्पष्ट किया जाता है।) पूर्वपक्ष (दिगंबर ) : सर्वोत्कृष्टपद की प्राप्ति सर्वोत्कृष्ट अध्यवसाय के द्वारा प्राप्त की जाती है। जगत
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