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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ६७, वैशेषिक दर्शन
प्रशस्तपाद - भाष्यकार की टीका, न्यायकंदली टीका, उदयनाचार्यविरचित किरणावली टीका, व्योमशिवाचार्यकृत व्योमवती टीका, श्रीवत्साचार्यकृत लीलावतीतर्क, आत्रेयतंत्र आदि वैशेषिको के तर्कग्रंथ है | ॥६७॥
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॥ इस अनुसार से श्रीतपोगच्छरुप आकाशमंडप में सूर्य जैसे तेजस्वी पू.आ.श्री देवेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा के चरणकमलसेवी पू. आ. श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी महाराजा विरचित षड्दर्शन समुच्चय की टीका तर्करहस्यदीपिका में वैशेषिक मत के निर्णय नाम का पांचवां अधिकार सानुवाद पूर्ण होता है ।
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