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षड्दर्शन समुञ्चय भाग-२, श्लोक -५५, जैनदर्शन
इत्याकारक समान आकार है, तो दोनो में फर्क क्या है ?
उत्तर : दोनो का आकार एक होने पर भी प्रतिज्ञावाक्य में पक्ष में साध्य की सिद्धि हुई नहीं है, जबकि निगमनवाक्य में पक्ष में साध्य की सिद्धि होने के बाद का निर्देश होता है। इतना दोनो के बीच फर्क है। वही पुनः पद लिखने का प्रयोजन है।) यह पक्षादि (प्रतिज्ञादि पांच) को पंचावयव कहा जाता है। यहाँ पक्षादि पंचावयव के समजाने के लिए उदाहरण देते है.... ___ (१) प्रतिज्ञा (पक्ष) वाक्य : शब्दः परिणामी । (२) हेतु वाक्य : कृतकत्वात् । (३) उदाहरण वाक्य : (१) अन्वय दृष्टान्तः यः कृतकः, स परिणामी दृष्टः, यथा घटः (२) व्यतिरेकदृष्टान्त : यस्तु न परिणामी स न कृतको दृष्टः, यथा वन्ध्यास्तनन्धयः । (४) उपनय वाक्य : कृतकश्च अयम् (शब्दः) अथवा शब्दः परिणामीव्याप्यकृतकवान् । (५) निगमन वाक्य : शब्दः परिणामी ।
(यहाँ याद रखना कि सामान्य से पक्षः साध्यवान् हेतोः ऐसा अनुमानप्रयोग होना चाहिए । अर्थात् यहाँ प्रस्तुत में शब्दः परिणामी, कृतकत्वात् प्रयोग होना चाहिए। परंतु जैन दार्शनिक ग्रंथो में ज्यादातर साध्यवान् पक्षः हेतोः अर्थात् परिणामी शब्दः कृतकत्वात् ऐसा प्रयोग हुआ दीखाई देता है ।) अब पंचावयव के उदाहरण के विषय में पंक्ति खोली जाती है।) अत्रोदाहरणम् -
शब्द परिणामी है। क्योंकि कृतक है। जो तक होता है, वह परिणामी - परिवर्तनशील दिखाई देता है। जैसे कि घट दिखाई देता शब्द कृतक है, तो इसलिए वह परिणामी भी होना चाहिए। जो परिणामी होता नहीं है, वह कृतक (जन्य) भी दिखाई देता नहीं है। जैसे कि, वंध्या का पुत्र । इसलिए शब्द कृतक है, इसलिए वह परिणामी ही होगा।
शंका : यहाँ आपने निश्चित अन्यथा अनुपपत्ति = अविनाभावरुप हेतु का एक ही स्वरुप कहा है। (हेतु के लक्षण में पक्षधर्मकता, सपक्षसत्त्व, विपक्षासत्त्व, ये तीन रुपो का समावेश होता है।) वह पक्षधर्मता आदि तीन रुप क्या हेतु के लक्षण में आते नहीं है ?
समाधान : (पक्षधर्मता आदि तीन रुप हेतु के अव्यभिचारी लक्षण नहीं है। अर्थात् त्रैरुप्य हेतु का अव्यभिचारी लक्षण नहीं है।) क्योंकि पक्षधर्मता आदि तीन रुप होने पर भी तत्पुत्रत्वादि हेतु साध्य का गमक बनता दिखाई देता नहीं है और पक्षधर्मतादि तीन रुप न होने पर भी हेतु साध्य का गमक बनता दिखाई देता है। अर्थात् "गर्भ में रहनेवाला मैत्र का बालक श्याम (काला) है। क्योंकि वह मैत्र का पुत्र है । जैसे कि, उसके पांच श्याम (काले) बच्चे ।" इस अनुमान प्रयोग के हेतु में पक्षधर्मता, सपक्षसत्त्व, विपक्षासत्त्व ये तीन रुप होने पर भी "तत्पुत्रत्व" हेतु साध्य का गमक बनता नहीं है। क्योंकि तत्पुत्रत्व = मैत्रतनयत्त्व रुप हेतु का श्यामत्व साध्य के साथ कोई अविनाभाव नहीं है। • अब त्रैरुप्य होने पर भी हेतु का साध्य के साथ अविनाभाव न होने से हेतु साध्य का गमक बनता नहीं है और त्रैरुप्य न होने पर भी हेतु का साध्य के साथ के अविनाभाव के योग से हेतु साध्य का गमक बनता
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