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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५७, जैनदर्शन
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में स्वरुपमात्र के सद्भाव से किया गया विरोध है। अर्थात् दोनो के स्वरुप स्वतंत्र होने के कारण उन दोनो में विरोध है ? या (२) वे दोनो एक समय में एकसाथ रह सकते नहीं है इसलिए विरोध है ? या (३) वे दोनो एक द्रव्य में एकसाथ रह सकते न होने से विरोध है ? या (४) एक द्रव्य में एक समय साथ रहने में विरोध है ? या (५) एक समय एक द्रव्य में एक प्रदेश में साथ रहने में विरोध है ?
उसमें "दोनो का स्वतंत्र स्वरुप होने से साथ रहने में विरोध है।" यह प्रथम पक्ष योग्य नहीं है। क्योंकि.. शीतस्पर्श अपने स्वरुप के मात्र सद्भाव से, अन्य समीपदेश संयोग आदि निमित्तो की अपेक्षा बिना उष्णस्पर्श का विरोधि बनता है तथा उष्णस्पर्श भी अपने स्वरुपमात्र के सद्भाव से तादृश अन्यनिमित्तो से निरपेक्षरुप से शीतस्पर्श का विरोधी बनता है, तो तीनो लोक में भी उन दोनो का अभाव हो जायेगा। - [पंक्ति का अर्थ : उसमें प्रथम पक्ष योग्य नहीं है, क्योंकि शीतस्पर्श का अन्यनिमित्तो की अपेक्षा बिना मात्र अपने स्वरुप के सद्भाव से उष्णस्पर्श के साथ विरोध नहीं है या उष्णस्पर्श को भी अन्यनिमित्तो से निरपेक्ष मात्र अपने स्वरुप के सद्भाव से शीतस्पर्श के साथ विरोध नहीं है। अन्यथा (उन दोनो के बीच तादृशविरोध हो तो) तीन लोक में भी उन दोनो का अभाव हो जायेगा। क्योंकि.. शीतस्पर्श अपने स्वरुप के सद्भाव मात्र से कहीं भी रहकर तीन लोक में किसी भी स्थान में रहे हुए उष्णस्पर्श का नाश कर देगा और उष्णस्पर्श भी उसी प्रकार से शीतस्पर्श का नाश कर देगा। इसलिए दोनो का परस्पर नाश होने से तीन लोक में भी दोनो का सर्वथा अभाव सिद्ध हो जायेगा ।] ___ एक काल की अपेक्षा से विरोध सूचित करता द्वितीयपक्ष भी योग्य नहीं है। क्योंकि एक ही काल में दोनो का पृथक् पृथक् सद्भाव उपलब्ध होता ही है। (जैसे कि... जिस समय बर्फ शीत है, उस समय अग्नि उष्ण है।) ___ एक द्रव्य की अपेक्षा से विरोधवाला तृतीयपक्ष भी योग्य नहीं है। अर्थात् एक द्रव्यरुप आधार की अपेक्षा से भी सत्त्व-असत्त्व धर्म को विरोध नहीं है। क्योंकि... एक ही लोहे के भाजन में रात में शीतस्पर्श और दिन में उष्णस्पर्श उपलब्ध होता है। इसलिए एक द्रव्य में उन दोनो का विरोध नहीं है।
"एक द्रव्य में एक समय उभय धर्म का विरोध है।" यह चौथा पक्ष भी उचित नहीं है। क्योंकि.. धूपदान इत्यादि में एक समय एक तरफ उष्ण स्पर्श और दूसरी तरफ शीत स्पर्श का अनुभव होता ही है।
"एक समय में एक द्रव्य में एक प्रदेश में उभय धर्मों का विरोध है।" यह पांचवा पक्ष भी संगत नहीं है। क्योंकि एक ही तपे हुए लोहे के भाजन में स्पर्श की अपेक्षा से जो प्रदेश में उष्णत्व है, उसी प्रदेश में रुप की अपेक्षा से शीतत्व है। (वे तपे हुए लोहे के भाजन में जब स्पर्श की अपेक्षा से उष्णत्व होता है, तब भी) यदि रुप की अपेक्षा से उष्णत्व हो तो (उस भाजन को देखने से) मनुष्य की आंख जल जाने की आपत्ति आयेगी। शंका : एक वस्तु में एक साथ उभयरुपता किस तरह से संगत होती है? अर्थात् एक वस्तु में परस्पर
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