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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक - ५५, जैनदर्शन
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का तथा लिखित = स्टेम्प, साक्षि और भुक्ति = अनुभव, ये तीन को जो प्रमाण मानते है, उनके वे प्रमाणो का तथा दूसरे वादियों के द्वारा परिकल्पित अन्य प्रमाणो का यथासंभव प्रत्यक्ष और परोक्ष में अन्तर्भाव करना चाहिए और (जो प्रमाणभूत न हो उसका) निराकरण करना चाहिए ।
(इस तरह से युक्ति और अनुपलब्धि, इन दोनो प्रमाणो का भी उपरोक्त दो प्रमाणो में समावेश कर देना। यदि युक्ति अविनाभाव रखती हो, तो उसका समावेश अनुमानो में करना और अविनाभाव रखती न हो तो वह प्रमाणरुप ही नहीं है। ___ अनुपलब्धि तो अभावप्रमाणरुप है। इसलिए उसका यथासंभव प्रत्यक्षादि में अंतर्भाव हो जायेगा। आदि शब्द से (प्रतिवादियों के द्वारा माने गये) अन्यप्रमाणो का भी प्रत्यक्ष और परोक्ष में ही अंतर्भाव कर लेना. । जैसे कि, वृद्धनैयायिक विशिष्ट उपलब्धि के जनक ज्ञानात्मक या अज्ञानात्मक सभी पदार्थो को साधारणरुप से प्रमाण मानते है। उन्हों ने कहा है कि "लिखित स्टेम्प, साक्षि तथा भुक्ति = अनुभव तीन प्रमाण है।" तथा अन्यवादि द्वारा माने गये दूसरे प्रमाणो का यथासंभव प्रत्यक्ष और परोक्ष में समावेश करना और अप्रमाणभूत हो तो खंडन करना ।)
इसलिए इस अनुसार से प्रमाण की प्रत्यक्ष और परोक्षरुप से कही गई (प्रमाण की) दो संख्या का अतिक्रम करने के लिए इन्द्र भी समर्थ नहीं है।
अथ तयोर्लक्षणाद्यभिधीयते-स्वपरव्यवसायि ज्ञानं स्पष्टं प्रत्यक्षम् -66 । तद्विप्रकारं सांव्यवहारिकं पारमार्थिकं च । तत्र F-67सांव्यवहारिकं बाह्येन्द्रियादिसामग्रीसापेक्षत्वादपारमार्थिकमस्मदादिप्रत्यक्षम्, F-6पारमार्थिकं त्वात्मसंनिधिमात्रापेक्षमवध्यादिप्रत्यक्षम् । सांव्यवहारिक द्वेधा, चक्षुरादीन्द्रियनिमित्तं मनोनिमित्तं च । तद्विविधमपि चतुर्धा, F-6°अवग्रहेहावायधारणाभेदात् । तत्र विषयविषयिसन्निपातानन्तरसमुद्भुतसत्तामात्रगोचरदर्शनाज्जातमाद्यमवान्तरसामान्याकारविशिष्टवस्तुग्रहणमवग्रह:F-70 । अस्यार्थः-विषयो द्रव्यपर्यायात्मकोऽर्थो, विषयी चक्षुरादिः, तयोः समीचीनो भ्रान्त्याद्यजनकत्वेनानुकूलो निपातो योग्यदेशाद्यवस्थानं, तस्मादनन्तरं समुद्भूतमुत्पन्नं यत्सत्तामात्रगोचरं दर्शनं निराकारो बोधस्तस्माज्जातमाद्यं सत्तासामान्याद्यवान्तरैर्मनुष्यत्वादिभिर्विशेषैर्विशिष्टस्य वस्तुनो यदग्रहणं ज्ञानं तदवग्रहः। पुनरवगृहीतविषयसंशयानन्तरं तद्विशेषाकाङ्क्षणमीहा'-71 । तदनन्तरं तदीहितविशेषनिर्णयोऽवाय:-72 । अवेतविषयस्मृतिहेतुस्तदनन्तरं धारणा -73 । अत्र च :-74पूर्वपूर्वस्य प्रमाणतोत्तरोत्तरस्य च फलतेत्येकस्यापि मतिज्ञानस्य चातुर्विध्यं कथञ्चित् प्रमाणफलभेदश्चोपपन्नः । तथा यद्यपि क्रमभाविनामवग्रहादिनां हेतुफलतया व्यवस्थितानां पर्यायार्थानेदः तथाप्येकजीवतादात्म्येन द्रव्यार्थादेशादमीषामैक्यं कथञ्चिदविरुद्धं, अन्यथा
(F-66-67-68-69-70-71-72-73-74) - तु० पा० प्र० प० ।
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