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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक - ५२, जैनदर्शन
उसमें यदि आप ऐसा कहोंगे कि "स्त्रीयां सचेलक होने से उसमें चारित्र का अभाव है" तो हमारा प्रश्न है कि यदि कपडे भी चारित्र के अभाव के हेतु है, तो वे कपडे किस कारण से चारित्र का अभाव करते है ? क्या (१) कपडे के परिभोगमात्र से चारित्र का अभाव होता है ? या (२) परिग्रहरुप होने के कारण (ममता होने से) चारित्र का अभाव होता है ?
यदि आप ऐसा कहोंगे कि कपडे के परिभोगमात्र से चारित्र का अभाव होता है। तो हमारा प्रश्न है कि स्त्रीयां जो कपडे का परिभोग करती है, उन वस्त्रो का परिभोग क्या (१) वस्त्र के परित्याग में वे समर्थ न होने के कारण होता है ? या (२) वस्त्र संयम में उपकारक होने के कारण होता है ?
उसमें "वस्त्र के परित्याग में वे समर्थ न होने के कारण वस्त्र का परिभोग करती है" ऐसा प्रथमपक्ष उचित नहीं है . क्योंकि प्राणो से अधिक दूसरी कोई चीज प्रिय होती नहीं है। उन प्राणो का भी (शील के रक्षण के लिए-गुण समृद्धि की रक्षा के लिए) त्याग करती स्त्रीयां दिखाई देती है। (यदि वस्त्रो से भी अत्यंत प्रिय प्राणो का त्याग करने का सामर्थ्य स्त्रीयो में आ सकता हो, तो फिर) वस्त्र की तो क्या बात करे ? (ये तो सुतरां त्याग कर सकती है।)
संयम में उपकारी होने के कारण वे वस्त्र का परिभोग करती है - ऐसा कहोंगे तो पुरुष भी संयम के लिए तथा संयम की स्थिरतारुप उपकार के लिए वस्त्र का परिभोग क्यों न कर सके? उसमें क्या हानी है?
पूर्वपक्ष (दिगंबर): स्त्रीयां अबला है। (तथा उसके शरीर के अवयवो की रचना ही ऐसी है कि जिससे) पुरुषो के द्वारा जबरदस्ती से उपभोग किया जाता है। इसलिए वस्त्र के बिना स्त्रीयों के शील की - संयम की रक्षा हो नहीं सकती। संयम में बाधा का संभव होने से वे वस्त्र का परिभोग करती है। परंतु पुरुषो को वैसा कोई संभव नहीं है। इसलिए पुरुषो को वस्त्रो का उपभोग होता नहीं है।
उत्तरपक्ष ( श्वेतांबर): आपके उपरोक्तकथन से तो यह तात्पर्य निकलता है कि, स्त्रीयों के वस्त्र के परिभोगमात्र से चारित्र का अभाव होता नहीं है। आहार जैसे (शरीरपुष्टि) द्वारा संयम में उपकारक है, वैसे वस्त्र भी संयम में उपकारक ही है।
तथा वस्त्र परिग्रहरुप भी नहीं है, कि जिससे उससे चारित्र का अभाव हो । वस्त्र परिग्रहरुप कब बनते है? (१) क्या वस्त्र मूर्छा (ममत्व) का कारण होने से परिग्रहरुप बनते है? या (२) क्या धारण करनेमात्र से परिग्रहरुप बनते है ? या (३) क्या वस्त्र के स्पर्शमात्र से परिग्रहरुप बनते है ? या (४) क्या जीवो की उत्पत्ति के स्थान होने के कारण परिग्रहरुप बनते है? ___ "वस्त्र मूर्छा (ममत्व) का कारण होने से परिग्रहरुप है" ऐसा कहोंगे तो (हमारा प्रश्न है कि...) शरीर भी मूर्छा का हेतु होता है या नहि ? __ "शरीर मूर्छा का कारण बनता नहीं है।" ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि शरीर अंतरंग होने के कारण तथा अत्यंत दुर्लभ होने से विशेष से मूर्छा का कारण बनता है। कहने का मतलब यह है कि शरीर
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