________________
षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक ५२, जैनदर्शन
एव वरीयान् । यत्र सान्तरापि सुखलेशप्रतिपत्तिरप्यस्ति । अतो न वैशेषिकोपकल्पिते मोक्षे कस्यचिद्गन्तुमिच्छा । उक्तंच - वरं वृन्दावने वास: "-14, श्रृगालैश्च सहोषितम् । नतु वैशेषिकीं मुक्तिं, गौतमो गन्तुमिच्छति ।।१।।”
व्याख्या का भावानुवाद :
उत्तरपक्ष ( जैन ) : आपका "संतानत्व" हेतु प्रमाण से बाधित होने के कारण साध्य को सिद्ध कर सकता नहीं है। इसलिए सत्य नहीं है । क्योंकि (१) "संतानत्व" हेतु आत्मा से सर्वथा भिन्न ऐसे बुद्धि आदि गुणो का उच्छेद करता है ? या (२) आत्मा से सर्वथा अभिन्न ऐसे बुद्धि आदि गुणो का उच्छेद करता है ? या (३) आत्मा से कथंचित् भिन्न ऐसे बुद्धि आदि गुणो का उच्छेद करता है ?
१४९/७७२
उसमें प्रथमपक्ष में हेतु आश्रयासिद्ध बन जाता है । क्योंकि संतानि से अत्यंतभिन्न संतान ही उपलब्ध होती नहीं है, असत् है । आत्मा से भिन्न सत्ता रखनेवाले बुद्धि आदि गुणो का आश्रय सिद्ध ही नहीं है कि जिसमें आपका हेतु रहे ! इसलिए हेतु आश्रयासिद्ध बनता है । स्वसाध्य को सिद्ध कर सकता नहीं है।
द्वितीयपक्ष भी उचित नहीं है । क्योंकि बुद्धि आदि गुण आत्मा से सर्वथा अभिन्न हो तो, बुद्धि आदि का उच्छेद होने से (संतान का उच्छेद होने से) संतानि ऐसे आत्मा का भी उच्छेद हो जायेगा ? इसलिए यह मोक्ष किसका होगा ?
तृतीय कथंचित् भिन्नाभिन्न पक्ष में वैशेषिको के अपने सिद्धान्त की हानिस्वरुप निग्रहस्थान आ जाता है। क्योंकि वैशेषिको ने धर्म और धर्मि को एकांतिक भिन्न माना है। वैसे ही, संतानत्वहेतु विरुद्ध भी है । क्योंकि कार्य-कारणभूत क्षणप्रवाहो को संतान कहा जाता है । वह कार्य-कारणभाव सर्वथा (एकांत) नित्यवाद में या एकांत अनित्यवाद में असंभवित है । अर्थक्रिया करने की शक्ति (वस्तु का अपने कार्य करने की शक्ति स्वरुप अर्थक्रियाकारित्व) तथा तन्मूलक कार्यकारणभाव तो अनेकांतवाद में ही हो सकता है। (उसका प्रतिपादन विशेष आगे करेंगे ।) इसलिए "संतानत्व" हेतु द्वारा आपके साध्य से बिलकुल विपरीत कथंचित् नित्यानित्य पदार्थ की ही सिद्धि होती है। इसलिए हेतु विरुद्ध भी है।
T
तथा उपरोक्त अनुमान निर्दिष्ट दृष्टांत साध्यविकल है। क्योंकि प्रदीपादि का अत्यंत उच्छेद असंभवित है। (दीपक जब बुझता है, तब दीपक के चमकते ) भास्वर रुपवाले तैजस परमाणु भास्वररूप का त्याग करके अंधकार रुप में परिवर्तित होते है । परंतु दीपक का अत्यंत उच्छेद होता नहीं है।
अनुमान प्रयोग : पूर्वरुप का त्याग, उत्तररुप की उत्पत्ति और पुद्गलरूप से स्थिर रहने के परिणामवाला दीपक है। (परंतु अत्यंत उच्छेद होनेवाला दीपक नहीं है ।) क्योंकि सत् है । जैसे कि, घटादि ।
इस विषय में बहोत कहने योग्य है । परंतु वह अनेकांत के प्रकरण में विस्तार से कहेंगे ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org