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षड्दर्शन समुञ्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
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पदार्थ रुप, रस, गंध, स्पर्श ये चार गुणवाले है। क्योंकि उसमें स्पर्श होता है, जैसे कि, पृथ्वी।" तथा "मन स्पर्शादि चार गुणवाला है। क्योंकि असर्वगत (अव्यापी) द्रव्य है। जैसे कि, पार्थिवपरमाणु ।" ये दोनो अनुमान प्रयोग से सिद्ध होता है कि, जहां स्पर्श होता है, वहां रुपादि तीन अवश्य होते ही है।
उसमें स्पर्श आठ प्रकार के है। (१) मृदु, (२) कठिन, (३) गुरु, (४) लघु, (५) शीत, (६) उष्ण, (७) स्निग्ध, (८) रुक्ष । परमाणुओ में स्निग्ध, रुक्ष, शीत, उष्ण ये चार ही स्पर्श होते है। परंतु स्कन्ध में यथासंभव आठो स्पर्श होते है।
रस पांच प्रकार के है । (१) तिक्त (तीखा), (२) कटु (कडुआ), (३) कषाय (तूरा), (४) आम्ल (खट्टा), (५) मधुर (मीठा) । कुछ आचार्य लवण (नमक) का समावेश मधुर रस में करते है और कुछ आचार्य उसको अन्य रसो के संसर्ग से उत्पन्न हुआ मानते है। गंध सुरभि और असुरभि दो प्रकार की है। काला, पीला, नीला, राता, श्वेत (सफेद) ये पांच वर्ण है। ये स्पर्श, रुप, गंध और वर्णवाले पुद्गल है।
पुद्गलो के मात्र स्पर्शादि धर्म है ऐसा नहीं है। परंतु शब्दादि धर्म भी पुद्गल के है। तत्त्वार्थसूत्र अ.५।२४ में कहा है कि... "शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अंधकार, छाया, आतप, उद्योतवाले भी पुद्गलद्रव्य होते है। अर्थात् शब्दादि पुद्गल के ही पर्याय है।"
सूत्र में पुद्गल के परिणाम (पर्यायो) के कथन में "मतुप्" प्रत्यय के प्रयोग से उसका नित्य संबंध सूचित होता है। (१) ध्वनि को शब्द कहा जाता है। कान से सुनी जाती आवाज को ध्वनि-शब्द कहा जाता है। (२) प्रयोग से होते लाक्षा (लाख) और काष्ठ के आश्लेष (बंध) की तरह तथा स्वाभाविक होते परमाणु का संयोग (बंध) की तरह औदारिकादि शरीर में प्रयोग से या स्वभाव से उत्पन्न होनेवाले परस्पर आश्लेष को बंध कहा जाता है। अर्थात् परस्पर जोडना उसे बंध कहा जाता है। (३) सौक्ष्म्य = पतलापन । (४) स्थौल्य = स्थूलता = स्थूलपन (५) संस्थान = आकृति, (६) भेद = खंड होना - टूकडे टूकडे होना, (७) अंधकार, (८) छाया, (९) आतप, (१०) उद्योत प्रत्यक्ष से प्रतीत है। यह उपरोक्त वर्णित स्पर्शादि धर्म तथा शब्दादि पर्याय (धर्म) पुद्गलो में ही होते है। ___ पुद्गलो के दो प्रकार है। (१) परमाणु स्वरुप और (२) स्कन्ध स्वरुप । उसमें परमाणु का लक्षण यह है - परमाणु कारण ही होता है। अर्थात् यह कार्यरुप नहीं है। वह स्कन्धो को उत्पन्न करने का कारण ही है। वह किसी से उत्पन्न नहि होता है। इसलिए कार्यरुप नहीं है। वह अन्त्य है। अर्थात् उससे छोटा कोई द्रव्य नहीं है। वह सूक्ष्म और नित्य है। एक रस, एक गंध, एक वर्णवाला तथा दो स्पर्शवाला परमाणु है। परमाणु स्कन्ध रुप लिंगो से = कार्यो से अनुमेय है। प्रत्यक्ष नहीं है। ॥१॥"
परमाणु सकलभेदो की पर्यन्तवति है। अर्थात् कोई पदार्थ के टूकडे किये जाये, अंत में एक ऐसा टूकडा हो कि पुनः उसका दूसरा टूकडा न हो सके, वह अंतिम भाग परमाणु ही है। वह परमाणु कारण भी है। द्वयणुकादि कार्यरुप है। उसका कारण परमाणु है। वह परमाणु सूक्ष्म है। अर्थात् आगमगम्य है। क्योंकि.. हमारी इन्द्रियो के व्यापार का वह विषय बन सकता नहीं है। अर्थात् हमारी इन्द्रियो से गोचरातीत है।
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