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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
में रहा हुआ अचित्त अग्नि सूक्ष्म परिणाम के कारण दृष्टिगोचर होता नहीं है। फिर भी विद्यमान होता ही है। वैसे सूक्ष्मपरिणाम के कारण वायु भी चक्षुगोचर बनता नहीं है। फिर भी विद्यमान है।
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अनुमान प्रयोग : वायु सचेतन है, क्योंकि दूसरो की प्रेरणा के बिना ही तिरछी और अनियमितदिशा में गति करनेवाला है। जैसे कि दूसरो की प्रेरणा के बिना यहां वहां फरते हुए गाय, घोडा इत्यादि । वैसे ही हेतु में तिरछी गति का नियमन करने से तथा " अनियमित" विशेषण ग्रहण करने से परमाणु के साथ व्यभिचार नहीं आता है। क्योंकि परमाणु नियमित गतिवाला है। "जीव और पुद्गल की गति अनुश्रेणि आकाशप्रदेशो की रचनानुसार सीधी होती है।" यह शास्त्रवचनानुसार पुद्गल की गति नियमित होती है । इसलिए परमाणु वायु की तरह अनियमित गतिवाला न होने से व्यभिचार नहीं आता है। इस अनुसार से शस्त्र से उपहत नहि हुआ वायु सचेतन जानना । अब वनस्पति में सचेतनत्व की सिद्धि करते है ।
बकुल, अशोक, चंपा इत्यादि अनेकविध वनस्पति के शरीर जीव के व्यापार के बिना मनुष्य के शरीर जैसे धर्म को भजनेवाले (धारण करनेवाले) बनते नहीं है। जैसे कि, मनुष्य का शरीर बाल, कुमार, युवान, वृद्ध इत्यादि परिणामो से विशिष्ट होता है। अर्थात् मनुष्य का शरीर बाल, युवान, वृद्ध अवस्थामें परिणाम पाता होने से सचेतन होता है और उसमें स्पष्ट चेतना प्राप्त होती है। वैसे वनस्पति का शरीर भी अवस्थाविशेष को प्राप्त करता होने से चेतनावाला ही है। जैसे कि, केतकी वृक्ष में अंकुर का फूटना, बाल, युवान और वृद्ध अवस्थायें होती है। इसलिए केतकीवृक्ष मनुष्य के शरीर की समान होने से (पुरुष का शरीर जैसे सचेतन है, वैसे) वनस्पति भी सचेतन है । उपरांत जैसे मनुष्य का शरीर सतत बाल, कुमार, युवान इत्यादि अवस्थाविशेष से बढता है । उसी अनुसार से वनस्पति का शरीर भी अंकुर, किसलय, शाखा, प्रशाखा इत्यादि अवस्थाविशेष से प्रतिनियत वृद्धि को प्राप्त करता है तथा जैसे मनुष्य का शरीर ज्ञान से अनुगत है । अर्थात् मनुष्य के शरीर में हेयोपादेय का परिज्ञान होता है, वैसे वनस्पति के शरीर में भी ज्ञान होता है। क्योंकि शमी, प्रपुन्नाट, सिद्ध, सरका, सुन्दका, बब्बल, अगत्स्य, आमलकी (इमली) इत्यादि वनस्पतियों में निद्रा और जागना इन दोनो का सद्भाव है। अर्थात् वे वनस्पतियां समय होने पर सोती और समय होने पर जागती दिखाई देती है। इसलिए उसमें भी ज्ञान है ।
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नीचे जमीन में गाडी हुई धन की राशी को कुछ बेले उसके उपर आरोहण करके अपना बनाती है। तथा बारिश, बादलो की आवाज और शिशिरऋतु के वायु के स्पर्श से वटवृक्ष, पिपल और नीम के पेडो में अंकुर फूटते है ।
सुंदर, मत्त, पैर में पायल पहने है, ऐसी सुकोमल पैरवाली कामिनी के पैर के ताडन से अशोकवृक्ष को पल्लव और फूल उगते है। अर्थात् तादृश कामिनी अशोकवृक्ष को लात मारे तब अशोकवृक्ष को नयी पत्तियां और फूल उगते है। युवति के आलिंगन से पनसवृक्ष को, सुन्दरी द्वारा सुगंधी दारु (शराब) के कूल्हे के सिंचन से बकुलवृक्ष को, सुगंधी निर्मल पानी के सिंचन से चंपकवृक्ष को, सुन्दरी की कटाक्ष नजर से तिलकवृक्ष को, पंचमस्वर के उद्गार से शिरीष और विरहकवृक्ष को पुष्प उगते है।
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