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षड्दर्शन समुच्चय भाग - २, श्लोक, ४८-४९, जैनदर्शन
का उत्कृष्ट आयुष्य दस हजार वर्ष का है। तथा जैसे इष्ट या अनिष्ट आहार के योग से मनुष्य का शरीर वृद्धि या हानि को प्राप्त करता है, वैसे वनस्पति का शरीर भी इष्ट या अनिष्ट आहार के कारण वृद्धि या हानि को पाता है।
जैसे मनुष्य के शरीर में रोग के संपर्क से पांडुत्व, उदरवृद्धि, स्थूलपन (मोटापा), कृशत्व (दुबलापन), ऊंगली-नाक मुड जाना या गल जाना इत्यादि विकृतियां दिखती है। वैसे वनस्पति के शरीर में भी वैसे प्रकार का रोग होने से पुष्प, फूल, पत्ते, छिलके इत्यादि विपरीत परिणामवाले होते है या गिर जाते है । उसी ही तरह से जैसे मनुष्य के शरीर में औषध के प्रयोग से वृद्धि-हानि, घा (प्रहार) का ठीक होना, तूटे हुए अवयवो का अच्छा हो जाना इत्यादि होता है, वैसे वनस्पति के शरीर में भी औषध (दवाई) के प्रयोग से वृद्धि-हानि इत्यादि होती है ।
जैसे मनुष्य के शरीर में रसायण, स्नेहादि के उपयोग से विशिष्टकान्ति, रस, बल का उपचय होता है, वैसे वनस्पति के शरीर में भी विशिष्टप्रकार के इष्ट ऐसे बारिश के पानी इत्यादि के सिंचन से विशिष्टरस, वीर्य और स्निग्धता का उपचय होता है ।
जैसे स्त्री के शरीर को गर्भावस्था में वैसे प्रकार के दोहद होते है । उसको पूरा करने से पुत्र जन्म होता है, वैसे वनस्पति के शरीर में भी होते दोहद को पूर्ण करने से उसको पुष्प, फलादि की उत्पत्ति होती है ।
इस प्रकार मनुष्य के शरीर में तथा स्त्री के शरीर में होता परिवर्तन सजीवता के कारण है, वैसे वनस्पति के शरीर में होता परिवर्तन भी सजीवता के कारण ही है, वह सिद्ध होता है ।
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तथा च प्रयोगः- वनस्पतयः सचेतना बालकुमारवृद्धावस्था १ प्रतिनियतवृद्धि २ स्वापप्रबोधस्पर्शादिहेतुकोल्लाससंकोचाश्रयोपसर्पणादिविशिष्टानेकक्रिया ३ छिन्नावयवम्लानिं ४ प्रतिनियतप्रदेशाहारग्रहण ५ वृक्षायुर्वेदाभिहितायुष्केष्टानिष्टाहारदिनिमित्तकवृद्धिहानि ७ आयुर्वेदोदिततत्तद्रोग ८ विशिष्टौषधप्रयोगसंपादितवृद्धिहानिक्षतभुग्नसंरोहण ९ प्रतिनियतविशिष्ट (शरीर) रसवीर्यस्त्रिग्धत्वरूक्षत्व १० विशिष्टदौहृदा ११ दिमत्त्वान्यथानुपपत्तेः, विशिष्टस्त्रीशरीरवत् । अथवैते हेतवः प्रत्येकं पक्षेण सह प्रयोक्तव्या अयं वा संगृहीतोक्तार्थः प्रयोगः-सचेतना वनस्पतयो, जन्मजरामरणरोगादीनां समुदितानां सद्भावात्, स्त्रीवत् । अत्र समुदितानां जन्मादीनां ग्रहणात् “जातं तद्दधि” इत्यादिव्यपदेशदर्शनाद्दध्यादिभिरचेतनैर्न व्यभिचारः शङ्कयः । तदेवं पृथिव्यादीनां सचेतनत्वं सिद्धम् । आप्तवचनाद्वा सर्वेषां सात्मकत्वसिद्धिः ।
व्याख्या का भावानुवाद :
वनस्पति में सचेतनता को सिद्ध करते अनुमान प्रयोग इस प्रकार है - ( १ ) वनस्पतियां
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