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उपसर्ग विजेता
__ परम तपस्वी, उपसर्ग विजेता, अधुनातन युग के समाज सुधारक आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) के युगल चरण कमलों में, मैं अपनी विनम्र श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूं। मुझे आशा है उनकी स्मृति में प्रकाशित ग्रंथ से अज्ञान तिमिर में भटके प्राणियों को सन्मार्ग मिलेगा। जबलपुर
ऐलक सम्यकत्वसागर 29.3.92
शुद्धाम्नायावलम्बी आत्महित करने वालों के लिए कहीं कोई बाधक तत्त्व नहीं है, यह बात स्व. आचार्य श्री शान्तिसागर जी (छाणी) महाराज ने सिद्ध कर दी है। उस समय जब उत्तर भारत में कोई मुनि परम्परा नहीं थी. उन्होंने भगवान् की प्रतिमा के समक्ष स्वयं दीक्षा लेकर न केवल आत्महित किया अपितु दूसरों के लिए भी मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया।
मैं उन शुद्धाम्नायावलम्बी दिगम्बराचार्य स्व. श्री शान्तिसागर जी (छाणी) - महाराज के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता हूँ तथा भव्य समाज 45 को उनके मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले, ऐसी शुभकामनाएं प्रस्तुत करता हूँ।
क्षुल्लक कुलभूषण महाराज
हार्दिक श्रद्धाञ्जलि ___ सच्चे साधु की चर्या राग द्वेष निवृत्ति परक होती है। चाहे वह किसी 4 भी प्रान्त, भाषा, या जाति के क्यों न हों। प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर (छाणी) जी महाराज की चर्या इतरों के लिये परम उपादेय रही है। वे त्यागी, उपसर्ग विजयी और वीतरागी साधु थे। ऐसे महान आचार्य के स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
हम पूज्य आचार्य श्री के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए यह कामना करते हैं कि यह स्मृति ग्रंथ उनके व्यक्तित्व से आकर्षित
होकर जिन धर्म की प्रभावना में एक नई दिशा प्रदान करे। LE श्रवणवेलगोल (कर्नाटक) कर्मयोगी चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी
1.6.92 12
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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