Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 569
________________ 1441454545454545454545454545755 4 से दुःख उत्पन्न होता है। जिस प्रकार वायु से धूलि उड़ जाती है, उसी प्रकार TS व्यसनों से व्रत उड़ जाते हैं, तप नष्ट हो जाते हैं, प्राण भी चले जाते हैं। - यहां प्रत्येक व्यसन की प्रकृति पर विचार प्रस्तुत हैंधूत क्रीड़ा :-लाटी संहिता में द्यूत-क्रीड़ा की व्याख्या की गई है अक्षपाशादि निक्षिप्तं वित्ताज्जयपराजयम्। क्रियायां विधते यत्र सर्व धूतमितिस्मृतम्।। -जिस क्रिया में खेलने के पासे डालकर धन की हार-जीत होती है, वह सब छूत कार्य है। जैसे-हार जीत की शर्त लगाकर ताश, चौपड़, शतरंज खेलना। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में आचार्य अमृतचन्द्र कहते हैं, कि सम्पूर्ण अनर्थों में श्रेष्ठ, मन की बुद्धि को नष्ट करने वाला, माया का निवास स्थान तथा चोरी और असत्य के भण्डार द्यूत कार्य का अवश्य ही त्याग करना चाहिये। क्योंकि जुए से बुद्धि भ्रमित होती है, मानव ज्ञान एवं चरित्र से पतित होकर परिवार-समाज की दृष्टि से गिर जाता है। असीम सम्पत्ति का स्वामी होकर भी दर-दर का भिखारी बन जाता है। धर्मराज युधिष्ठिर केवल एक चूत व्यसन से ही द्रौपदी को हारकर भाइयों सहित वनवासी हए। महाराजा नल अपना सम्पूर्ण राज्य हारकर अयोध्या के नरेश ऋतुपर्ण के यहां अश्वपालक बने। पाण्डव-पुराण के अनुसार यह द्यूत व्यसन साक्षात् संकटरूपी साँ के रहने का बिल है। धर्म का नाशक और नरक गति का मार्ग है। सर्व दोषों - का उत्पत्ति स्थल है। अपमान रूपी वृक्ष का मूल है। जुआ खेलने में हिंसा, झूठ, चोरी, लोभ और कपट आदि दोषों की अधिकता होती है अतः वेश्या-गमन और पर-स्त्री सेवन तथा शिकार खेलने के समान यह जीव स्वयं नष्ट होकर TE धर्मच्युत होता है। जुए में जीती हुई सम्पदा भी प्राण घातक बन जाती है। जुए में आसक्त प्राणी को अपने परिवार की भी चिन्ता नहीं रहती। उनकी देखभाल तो दूर अपनी मां, बहिन, स्त्री आदि के जेवर भी दांव पर लगा देता है। अनोखे अंगारों के सदृश जुए के पासे अक्षपट्ट पर फेंके जाते समय तो स्पर्श में शीतल होते हुये भी हृदय को जला देते हैं। अतःएव लाटी संहिता में कहा गया है-- प्रसिद्धं घूतकर्मेदं सद्यो बन्धकरस्मृतम्। यावदापन्मयं ज्ञात्वा त्याज्यं धर्मानुरागिणा।। 45-तत्काल बन्धन में डाल देने वाला यह द्यूत-कर्म प्रसिद्ध कुकर्म है। समस्त प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 52351 W A T5556575745454545454545

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