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कोई भी मनुष्य केवल मांसाहार पर दो तीन सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकता क्योंकि केवल मांस का आहार इतना अधिक तेजाब व विष उत्पन्न कर देगा कि उसके शरीर की संचालन क्रिया ही बिगड़ जायेगी। जो मनुष्य प्रकृति के विपरीत मांसाहार करते हैं, उन्हें भी कुछ न कुछ शाकाहारी पदार्थ लेने ही पड़ते हैं।
कोई भी व्यक्ति फल, अनाज, सब्जी देखकर नफरत से नाक नहीं सिकोड़ता, जबकि लटके हुए मांस को देखकर अधिकांश को घृणा उत्पन्न हो जाती है, क्या यह उसकी स्वाभाविक शाकाहारी प्रवृत्ति का द्योतक नहीं है?
बैल घास खाता है शेर मांस खाता है, बैल मांस नहीं खा सकता, शेर घास नहीं खा सकता पर मानव एक ऐसा प्राणी है कि घास भी खाता है और मांस भी खाता है। कितनी विचित्र बात है।
हमें उन तिर्यंच प्राणियों से शिक्षा लेनी चाहिये जिनके पास विवेक नहीं फिर भी प्रकृति का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं।
प्रकृति के निषेध के साथ-साथ धार्मिक दृष्टि से भी मानव को मांस का भोजन नहीं करना चाहिये। आदर्श धर्मग्रन्थों की पंक्तियों का पढने का प्रयास करें और देखें कि मांस भक्षण के बारे में क्या उपदेश और आदेश हैं
विभिन्न धर्मों द्वारा मांसाहार का निषेध
दया सखि धरम को पाल जीसस एक बार एक स्थान पर गये जहाँ कुछ लड़कों ने चिड़ियों के लिये जाल फैला रखा था। जीसस ने कहा 'कौन है, जिसने इन निर्दोष प्राणियों के लिये जाल फैला रखा है? जीसस उनके पास गये, उन पर हाथ रखकर कहा- जाओ जब तक जियो, उडो, और वे शोर करती हुईं उड़ गईं। जीसस ने कहा- मैं बलि और रक्त के त्यौहार बन्द करने आया हूँ।'
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कृष्ण जी कहते हैं : हे अर्जुन! जो शुभफल प्राणियों पर दया करने से होता है वह फल न तो वेदों से, न समस्त यज्ञों को करने से और न किसी तीर्थ वंदन अथवा स्नान से होता है।
कुरान शरीफ के शुरू में ही "विस्मिल्लाह हिर रहमान निर रहीम" खुदा को रहीम अर्थात् सब पर रहम करने वाला लिखा है।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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