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है। शान्त, संतुलित और संयमित जीवन के लिए सात्विक भोजन करना जरूरी है। मांसाहार बुद्धि को मन्द करने वाला, उत्तेजक और विकार उत्पन्न करने वाला तामसिक भोजन होता है।
शाकाहार भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग रहा है-वेदों और महाभारत - से लेकर भगवान महावीर, महात्मा बुद्ध के युग को पार करते हुए आधुनिक
समय में महात्मा गांधी, अनेक सन्तों, मनियों की वाणी से इसके मिलती रही है। महाभारत (अनुशासन पर्व, 114 .11) में भीष्म पितामह युधिष्ठिर से कहते हैं कि “पशुओं का मांस अपने पुत्र के मांस की तरह है और जो लोग इसका सेवन करते हैं वे इस भूतल पर निकृष्ट प्राणी हैं।" इसी प्रकार मनुस्मृति 5.49) में मांस भक्षण पर प्रतिबन्ध लगाया है क्योंकि उसमें हिंसा होती है जो कर्मबन्ध का कारण है।
पाश्चात्य संस्कृति व धर्म में भी शाकाहार की श्रेष्ठता के प्रमाण भरे IF पड़े हैं। ईसाई धर्म में परमात्मा ने जब मूसा को दस आदेश दिए तो उसमें
शाकाहार का आदेश आवश्यक रूप से निहित था। यीशु मसीह अमन और शान्ति के देवता थे। अहिंसा के अवतार थे। सूफी परम्परा में जितने भी संत हुए हैं वे सब शाकाहारी थे। मीरदार ने कहा-"जो रूहानियत के रास्ते पर चलने वाले हैं, उन्हें इस बात को कभी नहीं भूलना चाहिए कि अगर वे मांसाहार करेंगे तो उसके फलस्वरूप उन्हें अपने खुद के मांस को दण्ड रूप में चुकाना पड़ेगा।"
आज सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक और पारलौकिक आस्थाओं के बल 47 पर कोई बात अधिक समय तक नहीं टिक सकती। आज के मानव को चाहिए
तर्क पर आधारित वैज्ञानिक परीक्षण एवं निष्कर्ष । वैज्ञानिक, जीव-शास्त्री और - आहार विशेषज्ञ इस तथ्य की गहराई में जा रहे हैं कि शाकाहारी भोजन
सबसे अधिक पौष्टिक एवं मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम हैं। TE ब्रूसेल्स विश्वविद्यालय में दस हजार विद्यार्थियों पर परीक्षण किए गए। का परीक्षण से मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारी श्रेष्ठ प्रमाणित हुए।
शाकाहारियों में दया, प्रेम आदि के गुण प्रकट हुए जबकि मांसाहारियों में TE क्रोध, क्रूरता, भय आदि। शाकाहारियों में शारीरिक क्षमता, सहिष्णुता, प्रतिभा, TE धैर्य. सन्तलन आदि गण विकसित रूप में पाए गए।
एक सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया में प्रति व्यक्ति
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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