Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 591
________________ Fina 11 गावगा 5555454545454545454545454545 लिए किसी अन्य जीव की हत्या करता है तो सर्वप्रथम वह अपने लिए न्याय TS की मांग खो देता है। वह स्वयं अपने न्याय की मांग की हत्या करता है। । मनुष्य जब संकट में पड़ता है. पीड़ित होता है तो न्यायालय के दरवाजे 15 पर न्याय की मांग करता है, अपने साथियों से दया मांगता है और प्रभु कृपा की मांग करता है। अगर वह अपने दया भाव की सीमाएं सभी प्राणियों तक बढ़ाता है तो प्रतिदान में उसे भी वैसा ही मिलेगा। जैन दर्शन का एक सूत्र है-"परस्परोपग्रहो जीवानाम्"। हम जितना-जितना इस सिद्धान्त को जीवन में उतारते चले जायेंगे, उतना उतना अपने चारों ओर शांतिमय और अहिंसक वातावरण निर्मित करते जायेंगे। यह संवेदनशीलता एवं करुणा ही थी जिसने महान् अशोक, बादशाह अकबर, लियो टालस्टाय, महात्मा गांधी जैसे व्यक्तियों को समस्त प्राणियों के प्रति अहिंसक जीवन जीने की प्रेरणा दी। अफसोस है कि भारतीय अपनी इस अहिंसक विरासत को भूलकर मांसाहार का सेवन बढ़ाते जा रहे हैं, जबकि पश्चिमी देशों के लोग नवीन-नवीन प्रयोगों, परीक्षणों एवं व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर शाकाहार के समर्थक बनते जा रहे हैं। अपेक्षा है कि हम इसे समझें। शाकाहार शारीरिक दृष्टि से स्वास्थ्य, मानसिक दृष्टि से शांति, सामाजिक दृष्टि से संतुलित व्यवहार, आर्थिक दृष्टि से मितव्ययिता को प्रदान करने वाला है। बहुत जरूरी है मांसाहार और शाकाहार के प्रति हमारा दृष्टिकोण सही बने। जीवन विकास के लिए वह शक्ति भी किस काम की जो औरों को आहत कर जाए। सिर्फ अपना स्वार्थ देखना भी तो हिंसा है। अहिंसा के प्रति हमारे मन में आस्था जागे। हम अपनी सुखवादी इच्छाओं की मांगें सीमित करें। हिंसा के कारणों की मीमांसा करें। जहां तक जिस सीमा तक हो सके, अवश्य बचें। शाकाहार इसी सन्दर्भ में एक प्रयोग 46145454545454545454545454545 लाउन सुश्री वीणा जैन प्राममर्दि आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ

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