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अहिंसक जीवन में शाकाहार की भूमिका
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आज सम्पूर्ण विश्व हिंसा, आतंक और अशान्ति के वातावरण से आक्रान्त TE है। चारों ओर भय, असुरक्षा का साम्राज्य छाया हुआ है। मानव-मन द्वेष, ईर्ष्या,
स्वार्थपरता से भरा है। हिंसा और क्रूरता के कारणों की खोज की जाए तो अनेक कारणों में एक कारण हमारा गलत खान-पान भी है।
मांसाहारी भोजन से मनुष्य अपने संवेगों-आवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाता, वृत्तियां उत्तेजक बन जाती हैं, मानव व्यवहार सामंजस्य रहित हो जाता है और परिणामतः हिंसा के नए-नए रूपों का उद्भावन होता है। जैनाहार-विज्ञान भोजन से जुड़ी हिंसा और अहिंसा की अवधारणा पर आधारित है। जैनाचार्यों ने दैनिक जीवन में होने वाली हिंसा का बहत सूक्ष्मता के साथ विश्लेषण कर इसके चार प्रकार बताए हैं। 1. जीवन के अनिवार्य कार्यों से संबंधित आरम्भी हिंसा; 2. आजीविकोपार्जन संबंधित उद्योगी हिंसा;
3. सुरक्षा, दायित्वों से संबंधित विरोधी हिंसा और T-4 जानबूझ कर किसी प्राणी को पीडा देना या वध करना संकल्पी हिंसा।
मांसाहारी भोजन, चाहे स्वाद लोलुपतावश, आर्थिक लाभ की दृष्टि से, तथाकथित सभ्यता के प्रतीक के रूप में या धार्मिक अनुष्ठानों का बहाना लेकर
किया जाए, संकल्पी हिंसा के अन्तर्गत आता है, जिससे पूर्ण रूपेण बचा जा - सकता है। यह सत्य है कि जीने के लिये हमें कुछ न कुछ मात्रा में हिंसा 4 करनी ही पड़ती है पर महत्त्वपूर्ण बात है कि जीवन चलाने के लिए हम हिंसा
के प्रति कितने विवेकशील रहते हैं। शाकाहार भोजन में कम से कम हिंसा । होती है। यह प्राकृतिक आहार है, अहिंसक जीवन-शैली का महत्त्वपूर्ण सूत्र 4:है। पेड़-पौधों में कम जीवनी शक्ति पाई जाती है। शाकाहारी वस्तुओं की
- चेतना भी सुप्त होती है। अव्यक्त चेतना के जीव होने के कारण इन्हें कष्ट 1 भी कम होता है। ऐसे भोजन में मन में क्रूरता के भाव जागृत नहीं होते।
भोजन हमारे शरीर, भावना तथा मानसिक स्थिति को प्रभावित करता
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ :
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