Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 570
________________ 45454545454545454545454545454545 4 आपत्तियों का कारण जानकर धर्मानुरागी द्वारा यह त्याज्य है। TH मांस भक्षण-मांस-भक्षण निर्दयता की आधारशिला है। यह सबसे बड़ी हिंसा TE अतः सबसे बड़ा पाप है। यह असाध्य रोगों की जननी एवं क्रूरता का जनक है। मांसाहार तामसिक प्रवृत्ति का प्रतीक, मनुष्य की बुद्धि को दूषित करने वाला है। विज्ञान ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मांसाहार मानव का प्राकृतिक भोजन नहीं है। उसके दांतों एवं आंतों की बनावट मांसाहारी प्राणियों से बिल्कुल भिन्न है। यह मांस स्वभाव से भयभीत, निरपराधी और निराश्रित मूक प्राणियों के वध से प्राप्त होता है। "जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन". 'जैसा पीवे पानी वैसी बोले वाणी।" यही कारण है कि पश्चिमी देशों में हिंसा का तांडव नृत्य है। मांस-भक्षण की कुत्सित प्रवृत्ति से ही मानव-मानव के बीच भ्रात-भाव समाप्त होकर विश्व अशांति का सदैव भय बना रहता है। योगसार में लिखा है मांसास्वादनलुब्धस्य देहिनो देहिन प्रति। हन्तुं प्रवर्तते बुद्धिः शकुन्ता इव दुर्धियः।। ___मांस-स्वाद के लोभी की बुद्धि दुष्ट प्राणियों के समान दूसरे प्राणियों LE F- को मारने में रहती है। क्योंकि-मांस भक्षण से इन्द्रियां उच्छृखल होती हैं। आत्म उन्नति के लिये मांस सर्वथा बाधक होने से त्याज्य है। मनुस्मृति में लिखा है यावंति पशुरोमाणि पशुगात्रेषु भो नरः। तावद्वर्षसहस्राणि पच्यते पशुघातकः।। हे मनुष्य! पशु-पक्षियों के शरीर में जितने रोम हैं. उतने हजार वर्ष तक - दुःख उन्हें मारने वालों को प्राप्त होता है। राजकुमार वक इसका उदाहरण +है। जो लोग अमृत से भरे दूध, घी, फल, मेवे, अनाज, दाल जैसे सात्विक TE पदार्थों को छोड़ घृणित मांस को खाते हैं वे साक्षात् राक्षस ही हैं। अल्पायु, 1 दरिद्रता, पराधीनता, निम्नकुल में जन्म मांसाहार का ही परिणाम है। कैंसर का मुख्य कारण मांस, शराब, अंडा है। अतः आत्मोन्नति के लिये मांस सर्वथा बाधक होने से त्याज्य है। मद्यपान-पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में आ. अमृतचन्द्र कहते हैंरजसानां च बहूनां जीवानां योनिरस्थते मद्यम्। 524 54545 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - मा 154545

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