Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 573
________________ 9595959595959 सम्बन्ध रखना जीवन में अशान्ति पैदा करता है। चरित्र का नाशक है। यह ऐसा व्यसन है जो समग्र जीवन का विनाशक है। स्वदार सन्तोष ही सुख । का कारण है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यसन मूलरूप में आत्मघातक तो होता ही है किन्तु एक साथ ही अन्य व्यसनों को भी किसी न किसी रूप में सम्मिलित किये रहता है। एक और व्यसन है-अर्थ-लोलुपता। मनुष्य अपने LE भौतिक वैभव की पूर्ति हेतु येन केन प्रकारेण अर्थ संचय में लगा रहता है। अतः वासना पूर्ति की इच्छा को सीमित करना ही व्यसन पर नियंत्रण है। चौरासी लाख योनियों में मानव जीवन की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है। उक्त व्यसनों से मुक्त जीवन ही मानव-जीवन की सार्थकता है। व्यसन त्याग के बाद ही धर्म-साधना का प्रथम सोपान आरम्भ होता है। विश्व के समस्त धर्मों में व्यसन-त्याग के लिये बाध्य किया गया है। व्यसन चरित्र के लिये महान् कलंक हैं। ये आत्मा के प्रति एक अभिशाप हैं, जो आत्म-साधना से वंचित कर देते हैं। ये व्यसन एक नशा हैं जो मनुष्य को अज्ञानअंधकार में ले जाते है। अतएव दुर्लभ प्राप्य इस मानव जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिये उक्त व्यसनों से मुक्त रहना अपरिहार्य है। जयपुर डॉ. प्रेमचंद रांवका 51 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर आणी स्मृति-ग्रन्थ 527

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