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शाकाहार : एक प्राकृतिक आहार
आज समस्त मानव समुदाय एक विचित्र रुग्ण मनोदशा से गुजर रहा - है। उस रुग्ण-मनोदशा से छुटकारा दिलाने के लिये हजारों, लाखों, चिकित्सा LE
शास्त्री, शरीर शास्त्री प्रयोगशालाओं में दिन रात संलग्न है। नित्य नई-नई भदवाओं का आविष्कार किया जा रहा है, फिर भी मानव जाति अशान्त है,
अस्वस्थ है, तनावग्रस्त है और एक बेचैनी का जीवन व्यतीत कर रही है। इसका एकमात्र कारण यही है कि चिकित्सा शास्त्री केवल शरीर को ठीक
करने में लगे हैं, जबकि आवश्यकता इस बात की है कि इन्द्रियों और मन TE को स्वस्थ कैसे बनाया जाये।
एक बार चरक ऋषि कौवे का रूप धारण कर नदी तट पर जा बैठे। 卐 अनेक लोग वहां स्नान कर रहे थे। उन्होंने मनुष्य की भाषा में पूछा-कोडरूक. कोडरूक, कोडरूक।
एक ने कहा-जो प्रतिदिन "च्यवनप्राश" का सेवन करता हो, वह बात पूरी नहीं हुई कि दूसरे ने कहा-“मकरध्वज" की एक खुराक नित्य लेने वाला
कभी सुस्त होता ही नहीं, नई ताजगी उसे मिलती रहती है। तीसरे ने - कहा-"द्राक्षासव" पीने वाला सदा स्वस्थ रहता है। उत्तर सुनकर ऋषि हैरान
हो गये मन ही मन कहने लगे-मैंने शास्त्र इसलिये नहीं लिखा कि लोग
औषधियां खा-खाकर स्वस्थ रहें, औषधियों का दिग्दर्शन मैंने रोग निवारण 1 के लिए किया है, किन्तु इन लोगों ने तो पेट को ही दवाखाना बना लिया
है।
इस पेट को दवाखाना बनने से रोकने का एक ही मार्ग है, इन्द्रिय एवं मन की स्वस्थता जिसका मुख्य आधार है आहार-शद्धि । आहार-शद्धि का मतलब है-तामसिक तथा राजसिक आहार का निषेध | मन स्वस्थ रहे-यह हमारे लिये बहुत मूल्यवान है। भोजन का मन की क्रियाओं पर बहुत असर होता है। ऐसा भोजन करना जिससे मन विकृत, उत्तेजित और क्षुब्ध न हो। कहा भी है 'जैसा खाओ अन्न वैसा होवे मन, भोजन 3 प्रकार का होता है।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मति-ग्रन्थ
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