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9555555555555555555555555555 4 के मात्र रक्त ही नहीं, प्राणों को चूस लेते हैं।
यद्यपि व्यसनों को संख्या में सीमित नहीं किया जा सकता: क्योंकि पापों की तो सीमा होती है लेकिन इनकी न सीमा होती है और न काल प्रमाण | अतः इन्हें महापाप कहा गया है। आचार्यों ने सप्त व्यसनों का उल्लेख किया है।
द्यूतं मांसं सुरा वेश्या चौर्यारवे पराङ्गना।
महापापानि सप्तानि व्यसनानि त्यजेत वृधः।। -जुआ, मांस, शराब, वेश्यागमन, चोरी, शिकार और परस्त्री गमन ये सात 51 महापाप के स्थानभूत व्यसन हैं। बुद्धिमान को इनका त्याग अपेक्षित है। LEनीतिकार कहते हैं
यः सप्तस्वकमप्यत्र व्यसन सेवते कुधीः।
श्रावकं स्वं बुवाणः स जने हास्यास्पदं भवेत्।। LE -जो दुर्बुद्धि मनुष्य इन सात व्यसनों में से एक भी व्यसन का सेवन करता
है, वह अपने आपको श्रावक कहता हुआ मनुष्यों में हास्य का स्थान होता है। एक-एक व्यसन मानव जीवन में सुख-शांति, सम्मान एवं आरोग्य का घातक तथा धर्म, जाति एवं संस्कृति पर कलंक होता है। यदि एक से अधिक या समस्त व्यसन एक साथ एकत्र हो जावें तो क्या परिणाम होगा? व्यसन से प्राणी का धर्म-सदाचार, शिष्टाचार, लोकमर्यादा आदि समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं। वह दोषों का आकर हो जाता है। इन व्यसनों ने बड़े-बड़ों को पतित किया है
घूतेन पाण्डवा नष्टा नष्टो मांसाशनाद् बकः । मधेन यादवा नष्टा चारुदत्तश्च वेश्यया। चौर्याच्छ्रीभूतिराखेटाद् ब्रह्मदत्तः परस्त्रियाः। रागतो रावणो नष्टो मत्वेत्येतानि संत्यजेत्।।
जुंए से पाण्डव, मांस भक्षण से बक, मदिरा से यादव, वेश्या से चारुदत्त, चोरी से श्रीभूति, शिकार से ब्रह्मदत्त और परस्त्री राग से रावण नष्ट हुआ है-यह जानकर इन व्यसनों का त्याग कर देना चाहिये। क्योंकि
दुःखानि तेन जन्यन्ते जलानीवाम्बुवाहिना।
व्रतानि तेन धूमन्ते रजांसि मरुता यथा।। 4 -जिस प्रकार जल के स्रोत से जल उत्पन्न होता है, उसी प्रकार इन व्यसनों
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ