________________
45454545454545454545454545454545454545
45454545454545454545454
नाम था भोजगवहि। समुद्रविजय अरिष्टनेमि अथवा नेमिनाथ के पिता थे। - जैन परम्परा में समुद्रविजय के पुत्र नेमिनाथ तथा वासुदेव के पुत्र कृष्ण TE
वासुदेव दोनों चचेरे भाई थे। नेमिनाथ यादवों को अत्यन्त प्रिय थे। परंपरा । के अनुसार, दोनों भाइयों में युद्ध हुआ जिसमें कृष्ण को पराजित होना पड़ा।
हरिवंश संबंधी इन्हीं सब बातों को लेकर आचार्य जिनसेन ने 1 हरिवंशपुराण-जिसे अरिष्टनेमि पुराण भी कहा गया है-की रचना की। ।। - मलधारि हेमचन्द्र सरि की कति भवभावना (संसार भावना) में भी नेमिनाथ.
के चरित की ही प्रधानता है। इस कृति में 532 गाथाओं में 12 भावनाओं का धार्मिक एवं नैतिक कथा-कहानियों के माध्यम से सरस वर्णन किया गया है। यह वर्णन लगभग 670 पृष्ठों में है। ग्रंथ के आरंभ में नेमिनाथ के चरित का 155 पृष्ठों में प्ररूपण किया गया है। इसमें हरिवंश कुलोत्पत्ति, दशाह राजा, कंस का वृत्तान्त, वसुदेव का चरित, वसुदेव की पत्नियाँ, कृष्ण का जन्म, -7 नेमिनाथ का चरित आदि विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। उल्लेखनीय LE है कि श्वेतांवरीय परम्परा में हरिवंश कुलोत्पत्ति को दस आश्चर्यों में गिना गया है ये आश्चर्य हैं : 1. भगवान महावीर द्वारा उपसगों का सहन किया
जाना, 2. महावीर का गर्भहरण, 3 मल्लि का स्त्री-तीर्थकरत्व. 4. अभव्य-परिषद, 15. कृष्ण का अमरक का गमन, 6. चन्द्र सूर्य-अवतरण, 7. हरिवंशकुलोत्पत्ति,
8 चमर-उत्पात, 9. अष्टशतसिद्ध, 10 असंयतों की पूजा। विचारणीय है कि TE महावीर के गर्भहरण एवं मल्लि के स्त्री-तीर्थकरत्व की भांति हरिवंशकुलोत्पत्ति
को आश्चर्यकारी घटनाओं में क्यों गिनाया गया है? क्या इस प्रकार की घटनाओं को लोग असंगत समझते थे? अथवा इस प्रकार की घटनायें पूर्वागत परंपरा के अनुकूल नहीं थीं? इन घटनाओं में हरिवंशकुल की उत्पत्ति को सम्मिलित करने का क्या कारण हो सकता है? क्या उस समय तक हरिवंश कल को जैन परम्परा में निश्चित स्थान नहीं प्राप्त हो सका था? जो आगे चलकर प्राप्त हुआ। शलाका पुरुषों का समावेश
आल्सडोर्फ ने वसुदेवहिंडि का ऐतिहासिक मूल्यांकन करते हुए प्रश्न TE उठाया है कि हरिवंश कुलोत्पन्न कृष्ण एवं त्रेसठ शलाका पुरुषों का जैन
परम्परा में कम समावेश क्यों किया गया? क्या हरिवंश कुल की परंपरा पहले + से ही मौजूद थी जिसमें गुणादय की वृहत्कथा पर आधारित वसुदेवर्हिडिगत
-
प्रसममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ