Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 564
________________ 559595555954 1579554545454545454545454545454545 और राष्ट्र में सुरक्षा का वातावरण नहीं है। इसका कारण है आध्यात्मिक, नैतिक TE और सांस्कृतिक विकास की कमी। इस कमी को पूरा करने में महिलाओं -1 की विशेष भूमिका है। वह विकास का आधार बनकर समाज को नयी दृष्टि, LE नई दिशा और नया मोड़ दे सकती है। हमें यह निश्चय करना होगा कि हम समाज को किस दिशा में चाहते हैं। कुछ लोग हैं जो भौतिकता की चकाचौंध में आधुनिकता के नाम पर समाज को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं जहां इन्द्रिय-भोग की असीमित भौतिक सामग्री हो, जहां इच्छाएँ, आवश्यकताएँ बनकर रूप, रस, गन्ध, स्पर्श के क्षेत्रों में नये-नये आविष्कार करने की होड़ हो, जहां शरीर की भूख मिटाने के लिए सर्वसाधन उपलब्ध हों, जहां विलास और वैभव थिरकता हो, जहां नारी आराधना की शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित न होकर वासना की पुतली के रूप में भटकती हो। स्पष्ट है ऐसा विकास, विकास के नाम पर विनाश है जो उपभोक्ता संस्कृति को जन्म देता है। जहां तन, मन की शक्ति का क्षरण होता है, जहां व्यक्ति व्यक्ति न रहकर वस्तु बन जाता है, यन्त्र बन जाता है, जागरूक अवस्था में भी जड़-मृत और मूर्च्छित बना रहता है। ऐसे विकास में नारी की भूमिका उसकी काम-शक्ति को उभारने वाली होगी, जो किसी 4 भी समाज के लिए अभीष्ट नहीं है। समाज-विकास की सही दिशा, नैतिक और मानवीय दृष्टि से सबको अपने व्यक्तित्व के विकास के समान अवसर प्रदान करने की दिशा है। इस दिशा में ज्ञान हिंसा, भय, आतंक और शोषण का साधन न बनकर प्रेम, अहिंसा, बन्धुत्व, सहकारिता और कल्याण का साधन बनता है। ऐसे समाज के निर्माण और विकास में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मां और पत्नी के रूप में वह अपनी सन्तान और परिवार को ऐसी शिक्षा दें कि वे नयी जीवन-शैली का विकास कर सकें, जिसमें सम्प्रदाय, जाति, लिंग आदि के नाम पर भेदभाव - न हो। समाज में एक ऐसा वातावरण बने जिसमें किसी के हक का अपहरण न हो, किसी के श्रम का शोषण न हो, सब अपनी योग्यता और सामर्थ्य के अनुसार श्रमनिष्ठ बनें। जीवन में सादगी, संयम, स्वावलम्बन हो, खान-पान में सात्विकता हो, मद्य-मांस, जुआ, चोरी, धूम्रपान आदि व्यसनों से परिवार Pा और समाज मुक्त हो, शरीर के बनाव और शृंगार की अपेक्षा आत्म- गुणों के विकास की ओर ध्यान हो, अनैतिक तरीकों से धन न जोड़ा जाये, ऐसे धन का प्रवेश घर-गृहस्थी में न हो, इस ओर महिलाओं को विशेष । - सावधानी रखना है। यह तभी सम्भव है जब नारी का झुकाव फैशनपरस्ती -1518 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ । EिEमानानानानानानानाना,

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