Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 552
________________ नाशा: सार IIEI + से इस वैशिष्ट्य के साथ आत्मसात् कर लिया कि पाठकों को यह जानना TE कठिन हो गया कि वह कथानक उनका अपना नहीं है। इन कृतियों में कौशांबी के वत्सराज उदयन के सुपुत्र वृहत्कथा के नायक विद्याधर-चक्रवर्ती नरवाहन प्रदत्त की साहसिक रोमांचक घटनाओं को कथानायक कृष्णवासुदेव के जनक वसुदेव के साथ जोड दिया गया है । वसुदेवहिडि (वसुदेव के भ्रमण की कथा) । नाम की यही सार्थकता है। वृहत्कथा कथानक को आंशिक रूप में अपनाने 45 वाले जैन विद्वानों में गुणभद्र (उत्तर पुराण), पुष्पदंत (महापुराण अथवा - त्रिसद्विमहापुरिसगुणालंकाहः प्रोफेसर लुडविग आल्स डोर्फ द्वारा, हाम्बुर्ग | (1936 में प्रकाशित), कनकामर (करकंडुचरिउ), हरिषेण (वृहत्कथा कोश). देवेन्द्र गणि (आख्यान मणिकोश), रामचन्द्र मुमुक्षु (पुण्यास्रव कथा कोश) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। जैनेतर विद्वानों में वृहत्कथा को अपनाने वाले वृहत्कथाश्लोक संग्रह के कर्ता बुधस्वामी, कथासरित्सागर के कर्ता सोमदेव व वृहत्कथा-मंजरी के कर्ता क्षेमेन्द्र आदि का उल्लेख किया जा सकता है। इन पंक्तियों के लेखक ने अपनी "द वसुदेवहिंडि-ऐन ऑथेण्टिक जैन वर्ज़न ऑव द वृहत्कथा" (एल. डी. इन्स्टिट्यूट ऑव इंडोलौजी, अहमदाबाद, 1977) में प्रतिपादित किया है कि उपर्युक्त जैन एवं जैनेतर ग्रन्थों में किस रूप में और किन प्रसंगों में गुणादय की वृहत्कथा के कथानक का उपयोग किया गया है। इस दृष्टि से जिनसेन के हरिवंशपुराण का महत्त्व अधिक बढ़ जाता है। संघदास गणि के वसुदेवहिंडि में-जो कि अनेक स्थानों पर त्रुटित एवं स्खलित है-कतिपय प्रसंग ऐसे आते हैं जिनकी पूर्ति के लिये जिनसेन के हरिवंशपुराण एव हेमचन्द्राचार्य के त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित का IF आश्रय लेना आवश्यक हो जाता है। इस दृष्टि से भी हरिवंशपुराण जैसी महत्त्वपूर्ण रचना का आलोचनात्मक अध्ययन अनिवार्य है। भाहरिवंश की उत्पत्ति रामायण की भाँति जैन विद्वानों ने महाभारत को भी अपनाया। नन्दिसूत्र :- में रामायण, महाभारत और अर्थशास्त्र आदि का लौकिक श्रुत के रूप में उल्लेख किया गया है। वसुदेवहिंडि (पृ. 356-58) में हरिवंश कुल की उत्पत्ति का उल्लेख करते हुए अधंगवण्हि के दस पुत्रों के नाम गिनाये हैं जो दसार - अथवा दशाह के नाम से प्रसिद्ध थे-समुविजय, अक्खोय, थिमिअ, सागर, महिमव, अयल, धरण, पूरण, अभिचन्द और वसुदेव अंधगवण्हि के प्राता का 545454545454545454545454545454545 506 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ LEEEEEEEEEEEEECLE FFIFIFIFIFIFIFIFIFE

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