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हरिवंशपुराण और वृहत्कथा के संदर्भ में
___पुन्नाट संघीय (पुन्नाट अथवा पोन्नट कर्णाटक) जिनसेन प्रथम E(आदिपुराण के कर्ता मूलसंघीय सेनान्वयी जिनसेन द्वितीय से मित्र) एक
बहथत विद्वान थे जिन्होंने कर्णाटक से काठियावाड़ पहुंचकर शक संवत 705 (783 ई.) में वर्धमानपुर (बाढवाण) में हरिवंश को लेकर अपनी महत्त्वपूर्ण रचना
हरिवंशपुराण समाप्त की। सर्वप्रथम यह रचना 1930-31 में माणिकचन्द - दिगम्बर जैन ग्रंथमाला से दो भागों में प्रकाशित हुई। तत्पश्चात् पंडित
पन्नालाल जैन साहित्याचार्य के हिन्दी अनुवाद, प्रस्तावना एवं परिशिष्ट के साथ भारतीय ज्ञानपीठ काशी द्वारा सन् 1962 में प्रकाश में आई। निस्सन्देह पंडित पन्नालाल जी ने प्रथमानुयोग संबंधी इस कृति का अनुवाद प्रस्तुत कर हिन्दी पाठकों का बड़ा उपकार किया है। किन्तु कहना न होगा कि सांस्कृतिक
सामग्री से भरपूर इस अनुपम कृति का आलोचनात्मक अध्ययन अभी शेष ा है। वृहत्कथा की सुरक्षितता
यह जान लेना आवश्यक है कि पैशाची प्राकृत में रचित कवि गुणाढ्य की अनुपम कृति बड्ढकहा (बृहत्कथा) की रोमांचक कथा इसमें सुरक्षित है। गुणाढ्य की यह कृति आजकल अनुपलब्ध है। सर्वप्रथम महाकवि दण्डी (660-680 ई.) ने गुणाढ्य की इस कृति के काव्य सौष्ठव की प्रशंसा करते हुए 'भूतभाषामयी' के रूप में इसका उल्लेख करं इसे 'अमृतार्थ' रचना कहा
संक्षिप्त टिप्पणी-इस लेख के सम्बन्ध में विद्वानों के विचार सादर आमंत्रित हैं।
उद्योतन सूरि (779 ई.) जिनसेन द्वितीय (9वीं शताब्दी ई.) सोमदेवसूरि - (951 ई), धनपाल (970ई.) आदि जैन विद्वानों ने इस अनुपम कृति की मुक्तकंठ I से प्रशंसा की है। उद्योतन सूरि ने अपनी कुवलयमाला में पादलिप्त, सातवाहन = (हाल). षट्पर्णक के साथ गुणादय की बडकहा का उल्लेख करते हुए इसे
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ