Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 548
________________ 4514614545454545454545454545454545 1 3. अचौर्याणुव्रत : रखे हुए, पड़े हुए अथवा भूले हुए, बिना दिये हुए दूसरे 4 के धन को न स्वयं लेता है और न किसी दूसरे को देता है. वह स्थूल स्तेय का परित्याग अर्थात् अचौर्याणुव्रत है। . अचौर्याणुव्रत के अतीचारों की चर्चा करते हुए जैनाचार्यों ने जो वर्णन किया है उससे उनकी सूक्ष्म से सूक्ष्म विश्लेषण शक्ति का अदभुत परिचय प्राप्त होता है। इस अणुव्रत का धारक चोरी करने वाले चोर के लिए स्वयं प्रेरित करता है, दूसरे से प्रेरणा दिलवाता है और किसी ने उसकी प्रेरणा दी हो तो उसकी अनुमोदना करता हो तो यह चोर-प्रयोग दोष है। किसी LS चोर के द्वारा चुराकर लाई गयी वस्तु को ग्रहण करता है तो यह चौरार्थादान दोष है। उचित न्याय को छोड़कर अन्य प्रकार के पदार्थ का ग्रहण करना 57 विलोप कहलाता है, इसे ही विरुद्ध राज्यातिक्रम कहते हैं। जिस राज्य के साथ अपने राज्य का व्यापारिक सम्बन्ध निषिद्ध है उसे विरुद्ध राज्य कहते - हैं। विरुद्ध राज्य में महगी वस्तयें स्वल्प मूल्य में मिलती हैं, ऐसा मानकर टा वहाँ स्वल्प मूल्य में वस्तुओं को खरीदना और तस्कर व्यापार के द्वारा अपने राज्य में लाकर अधिक मूल्य में बेचना विरुद्ध राज्यातिक्रम नाम का दोष है। यदि इस प्रकार के दोष को समझकर व्यक्ति इस व्रत को धारण करता है तो तस्करी आदि को रोकने के लिए सरकार को जो करोड़ों रुपये व्यय करने पड़ते हैं वह जबर्दस्त समस्या स्वतः ही हल हो सकती है। आजकल + जगह-जगह वस्तुओं में मिलावट चल रही है इस प्रकार के दोष को सदृश सन्मिश्र दोष कहा है। समान रूप रंग वाली नकली वस्तु, असली वस्तु में मिलावट असली वस्तु के भाव से बेचना, जैसे घी को तेल आदि से मिश्रित करना कृत्रिम बनावटी सोना-चांदी के द्वारा धोखा देते हुए व्यापार करना सदृश सन्मिश्र दोष है। आज के समय में मिलावट होती है फलस्वरूप हजारों लोग रोग ग्रस्त हो जाते हैं। यहाँ तक कि दवाइयों में मिलावट के कारण प्राण भी गंवाने पड़ जाते हैं। यदि इस दोष को दृष्टिगत रखें तो समाज में व्यापार के क्षेत्र में स्वस्थ नैतिक वातावरण स्थापित हो सकता है। एक अन्य दोष है हीनाधिक विनिमान । जिनसे वस्तुओं का विनिमान-आदान-प्रदान, लेन-देन होता है उन्हें विनिमान कहते हैं। इन्ही को मानोन्मान भी कहते हैं। जिसमें । भरकर या तौलकर कोई वस्तु ली या दी जाती है उसे मान कहते हैं जैसे 45 प्रस्थ, तराजू आदि और जिससे नापकर कोई वस्तु ली या दी जाती है उसे उन्मान कहते है, जैसे सेंटीमीटर, मीटर आदि। किसी वस्तु को देते समय हीन मान-उन्मान और खरीदते समय अधिक मान-उन्मान का प्रयोग करना 1502 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ LELELELE TELELETELEELEानाचा IFI EFIFIFIFIFIFI

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