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4 बातें लगती हैं उनका प्रयोग हम दूसरों पर भी न करें। यहाँ तक कि प्राणिमात्र - के प्रति भी वही भावना रखनी चाहिए। जिस प्रकार हमें यदि खाने के लिए | उचित मात्रा में आहार प्राप्त नहीं होता है, कोई कटु वचनों को बोलता है । LE तो बुरा लगता है उसी प्रकार का आचरण हम दूसरे पर करके उसे दुःखमय ए. 4न बनायें। ऐसी भावना मन में जागत हो जाने से सम्पूर्ण विश्व में शान्ति
एवं समता का साम्राज्य स्थापित हो सकता है। आज एक राष्ट्र दूसरे की प्रभुसत्ता के प्रति आदर की भावना नहीं रखता सभी अपने आपको उच्च मानकर दूसरे राष्ट्रों को नीचा दिखाने हेतु प्रयासरत रहते हैं। यदि हम उसके उत्थान में योगदान नहीं दे सकते तो कम से कम उसकी प्रगति में बाधक न बनें, इस प्रकार की भावना ही समस्त राष्ट्रों के बीच सेतु बनकर जोड़ सकती है। इस प्रकार अहिंसाणुव्रत की भावना लोगों को सन्मार्ग प्रशस्त कराने हेतु उपयोगी है। 2. सत्याणुव्रत : जो स्थूल असत्य को नहीं बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है और ऐसा सत्य भी नहीं बोलता है, न दूसरों से बुलवाता है जो दूसरे के प्राणघात के लिए हो उसे सत्पुरुष स्थूल असत्य का त्याग अर्थात् सत्याणुव्रत । कहते है।
यदि सत्य वचनों का व्यवहार सामान्य जीवन में हो जाये तो छल-कपट का व्यवहार समाज से समाप्त होकर विश्वास का वातावरण बन सकता है। आज यथार्थ से हटकर हम लोगों को धोखा देने में सफल तो हो सकते हैं परन्तु धोखा वाले व्यक्ति का मन सदैव सशंकित रहता है कि कहीं मेरे असत्य का भण्डाफोड़ न हो जाये। एक असत्य को छिपाने के लिये अनेकों असत्यों को बोलना पड़ता है और अन्ततः असत्य एक न एक दिन प्रगट होता है।
जिसके कारण इस लोक में भी दुर्गति का पात्र उसे बनना पड़ता है, तथा TE परलोक में भी। सत्याणुव्रत के मिथ्या उपदेश, रहोभ्याख्यान, कूट लेख लिखना, TE
धरोहर को हड़प जाना, इशारों से कोई बात करना ये अतीचार कहे गये हैं। आचार्यों ने इन दोषों से सावधान कर व्यक्ति को सामाजिक बुराइयों से दूर रहने का निर्देश दिया है। कई लोग दो आदमियों के अच्छे सम्बन्धों के बीच नारदवृत्ति के द्वारा इधर-उधर की बातों को कहकर आपस में मतभेद स्थापित करा देते हैं। दूसरे लोगों को धोखा देकर उसका धन हड़पने की बात सोचते हैं। यदि इस व्रत का यथार्थ रूप से परिपालन किया जाये तो समाज में अनेकों लोगों के हृदयों में विशेष स्थान बनाया जा सकता है।
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1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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