Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 559
________________ 45456457455455555656457451461454545454545 विश्व शांति और अहिंसा 'जीवो जीवस्य भोजनम्'-प्रत्येक प्राणी दूसरे को खा जाना चाहता है | LF और दूसरे से खाये जाने की आशंका में जीता है। प्रत्येक प्राणी-समूह की F- यही प्रकृति और नियति प्रतीत होती है। बहुत पहले आदमी भी पुच्छ-विषाण हीन पशु' ही था। न जाने कैसे और कब, उसमें बुद्धि और भाषा का विकास 51 - हुआ। वह स्वयं सोचने-समझने लगा दूसरों की बात सुनने-समझने लगा, अपनी बात समझाने लगा और इन दोनों को याद भी रखने लगा। इसी 'मतिज्ञान और श्रुतज्ञान' या इसी श्रुति और स्मृति' ने इस मानव नामक पशु को मानवता की ओर अग्रसर होने, एक के बाद एक कदम उठाने और आदमी बनने को प्रेरित किया है हिंसा से अहिंसा की ओर एक-एक कदम बढ़ने का नाम ही संस्कृति है। __मनुष्य अपने प्राचीनतम इतिहास के युग में नरमांसाहारी तथा पशु पक्षियों का शिकार करने वाला प्राणी था। मनुष्य ने अहिंसा की दिशा में बहुत बड़ा कदम उठाया जब उसने नरमांसाहार का निषेध किया और पशु-हत्या के बजाय पशु-पालन का धंधा अपनाया तथा अपने भोजन में दूध और दूध से बने पदार्थों को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया । पर मांसाहार भी पुरानी आदत के कारण न्यूनाधिक रूप में चलता रहा। संस्कृति की उन्नति की दिशा में बहुत बड़ा कदम तब उठा, जब मानव ने कृषि के विज्ञान को समझा और कृषि की कला का विकास किया। मनुष्य कृषि-खेती से पशु-खेती की ओर बढ़ा। कृषि मानव जाति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से मनुष्य के लिए अपूर्व वरदान सिद्ध हुई। एक दाने से हजार दानों का उत्पादन, रात-दिन हथेली पर प्राण रखकर 4 दौड़ते-भागते, लड़ते-भिड़ते रहने के बजाय धरती से जुड़ने, घर, गांव बसाने, - विश्राम के समय में चर्चा-वार्ता, पढ़ने-पढ़ाने, सीखने-सिखाने आदि का समय 1 और अवसर मिला। कृषि से ही दर्शन और विज्ञान का प्रारम्भ हुआ। LS कृषि-संस्कृति की एक बड़ी देन राज्य संस्था का प्रारंभ और विकास 454545454 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ 513 545755454545454504745454545454545

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