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रूप दिया जा रहा है। तथा आचार्यश्री की जीवनी जन-जन तक पहुँचाने के लिये प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है।
आचार्य शान्तिसागर जी (छाणी) महाराज का जन्म सन् 1888 में +7 उदयपुर रियासत के छाणी ग्राम में हुआ। आपने 35 वर्ष की आयु में सन् TE 1923 में मुनि दीक्षा धारण कर ली। सन् 1926 में आपको आचार्य पद दिया
गया और बीस वर्ष तक देश में विभिन्न भागों में विहार करते हुए सन् 1944 में आपने समाधिमरण पूर्वक शरीर त्याग दिया। इस प्रकार साधना काल कुल इक्कीस वर्ष का रहा।
प्रारम्भिक जीवन
जन्म स्थान-आचार्य शान्तिसागर जी 'छाणी' इसी उपनाम से जाने जाते हैं। एक ही समय में शान्तिसागर जी नाम वाले दो आचार्य हुए इसलिये दक्षिण भारत में होने वाले चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी के नाम से आगे "दक्षिण" और राजस्थान प्रदेश के छाणी ग्राम में होने के कारण इनके नाम के आगे "छाणी" शब्द जुड़ गया और धीरे- धीरे वे इसी नाम से प्रसिद्ध हो गये।
छाणी राजस्थान के उदयपुर क्षेत्र का एक छोटा सा ग्राम हैं, पहिले उदयपुर राजस्थान की एक प्रमुख रियासत थी जिसके शासक महाराणा कहे जाते हैं। इतिहास-पुरुष महाराणा प्रताप इसी उदयपुर मेवाड़ के शासक थे जिन्होंने अपनी वीरता के कारण विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त की। इसी स्टेट का छाणी नाम भी एक जागीरदारी गाँव था जिसके शासक "ठाकुर" कहलाते थे। आचार्य शान्तिसागर जी के जन्म के समय छाणी ग्राम के जागीरदार मनोहर सिंह जी थे। छाणी उस समय बहत छोटा सा गाँव था. जिसमें अधि कांश मकान कच्चे, मिट्टी के बने हुए थे जिन पर घास फूस की छान पड़ी रहती थी। छानों का गाँव होने से इसे छाणी कहा जाने लगा। गाँव बहत छोटा था लेकिन उस छोटे गाँव में भी जैनों की बस्ती थी। सभी घर दशा हूमड़ जैन समाज के थे। हूमड़ समाज दो भागों में विभक्त है-दशा और बीसा। दोनों ही समाजों के अपने-अपने केन्द्र हैं। उदयपुर से केवल 55
कि.मी. दूरी पर स्थित होने के कारण तथा भारत प्रसिद्ध जैन तीर्थ ऋषभदेव 1 केशरिया जी से केवल 15 कि.मी. दूर होने के कारण उदयपुर एवं ऋषभदेव प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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