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45454545454545454545454545454545 4 प्रातः काल होने पर अपने स्वजनों को सभी भाईयों को सुनाया। सभी
TE स्वप्न अच्छे थे तथा आपके मुनि दीक्षा लेने का लक्षण बता रहे थे।
क्षुल्लक दीक्षा एवं चातुर्मास
उक्त स्वप्नों के पश्चात आपने उसी दिन उपवास किया और दीक्षा ग्रहण 1 कर ली। केशलोंच करके क्षुल्लक भेष धारण कर लिया। यहां से ओजगे और
पुणे की ओर विहार किया। वहाँ आठ दिन रहे। प्रवचन करते रहे। यहाँ पर - प्रतापगढ़ के जैन बन्धु आपको चातुर्मास का आमंत्रण देने आ गये। इसके - पश्चात् प्रतापगढ़ जाकर आपने चातुर्मास किया। यहाँ आपने एक साथ 32
उपवास किये और उपवास के पश्चात् मगनी बाई के यहाँ निरन्तराय आहार हुआ। आहार लेने के पूर्व भाद्रपद 14 को रात्रि 12 बजे मंदिर में नगाड़े के तीन शब्द हुए जिन्हें आस-पास के गांवों तक में सुना गया। उस समय मंदिर का ताला बन्द था। गाँवों में फ्लेग की बीमारी फैल रही थी. वह भी नगाडों
के शब्द के पश्चात् मिट गयी। इस घटना के पश्चात् आपका निरन्तराय आहार - हुआ। मगनी बाई ने श्राविका के गुण ग्रहण किये। यथाशक्ति दान दिया।
चातुर्मास के पश्चात् आपने गाँवों में विहार किया और विहार करते हुए अरथूण पहुँचे। अरथूण पहुँचने के पश्चात् आपके दर्शनार्थ बांसवाड़ा स्टेट
के बुकीया गाँव के एक जागीरदार ठाकुर ने आकर निवेदन किया कि उनके LE गाँव में 300-400 वर्ष पुराना जैन मंदिर है, जिसमें मूर्ति खण्डित हो गयी है
इसलिये वहाँ नयी मूर्ति विराजमान की जानी चाहिये। आपने ठाकुर सा. से
कहा-कि तम लोग मांसाहारी हो, जीवों को मारने वाले हो इसलिये ऐसे TE गाँव में मूर्ति कैसे विराजमान की जा सकती है। लेकिन ठाकुर सा. ने कहा FI कि यदि मूर्ति विराजमान हो जावेगी तो वह मांसाहार का त्याग कर देगा। 4 आपने अरथूणा के जैनों को बुलाया और उनके सामने सरदार से लिखवा
लिया कि दशहरा पर हमारे गाँव में भैंसा नहीं मारा जावेगा। उस गाँव में
अरथूणा के मंदिर में आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा को लाकर विराजमान कर पादिया। ठाकुर सा. ने भी 500) रुपया मंदिरजी में मूर्ति विराजमान करने के TE उपलक्ष्य में दिये। पण्डित नन्दलाल जी ने प्रतिमा को विधिपूर्वक विराजमान
कर दी। मंदिरजी पर सोने का कलश चढ़ाया। उस अवसर पर आपके केशलोंच हुये। मेले में करीब पांच हजार व्यक्ति एकत्रित हुए। आपके उपदेश
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ