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आचार्य श्री का जन्म - इसी छाणी ग्राम में करीब 100 वर्ष पूर्व हूमड़ जाति के देदीप्यमान नक्षत्र दिगम्बर जैन श्रावक श्री भागचन्द जी जैन नाम के सद्गृहस्थ रहते थे, उनकी भार्या का नाम श्रीमती माणिक बाई था जिसे भजनों में मणिकाबाई के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है इसी माणिकबाई की कुक्षी से कार्तिक वदी 11 विक्रम
संवत् 1945 के हस्तनक्षत्र में एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ। यही बालक - आगे चलकर आचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) उत्तर भारत
के नाम से देश में प्रसिद्धि प्राप्त कर स्वपर कल्याण कर गया। जिस प्रकार
पाषाण की खान से हीरा निकलता है उसी प्रकार एक अल्प शिक्षित समाज LE में एक नर रत्न का जन्म हुआ। आज भी उनके समाधिमरण के पचास वर्ष
पश्चात हम उन्हें स्मरण कर उनका वंदन करते हैं। धन्य है उस महान आत्मा को जिसकी शिष्य परंपरा वर्तमान में विशाल रूप में चल रही है।
बाल्यकाल
चरित्र नायक केवलदास एक होनहार बालक थे, माता-पिता और परिवार को अत्यन्त प्रिय थे। सभी बच्चों की तरह ही इनका पालन-पोषण हुआ,
धीरे-धीरे दूज के चन्द्रमा की तरह वृद्धि को प्राप्त होने लगे, गांव की मिट्टी +में अन्य लड़कों के साथ खेलते। जब कुछ बड़े हुए तो शिक्षा पाने की उम्र
में पढ़ाई का साधन नहीं होने से कोई विशेष पढ़ाई नहीं कर पाये, साधारण पढ़ना और पट्टी पहाड़े या जोड़ बाकी आदि पढे। 15 वर्ष की छोटी उम्र में सामान्य रोजगार तथा नौकरी करने लगे इस प्रकार आपकी बाल्यावस्था व्यतीत हो गई। जब 29 वर्ष की उम्र को पहंचे तब आपकी माताजी का स्वर्गवास हो गया। माता के वियोग से आपको भारी शोक हुआ किन्तु संसार की असारता व मृत्यु को अवश्यंभावी जानकर आपने धीरज का आश्रय लिया।
स्वप्न दर्शन
इन्हीं दिनों रात्रि को केवलदास ने दो स्वप्न देखे। एक स्वप्न तो श्री TE सम्मेदशिखर जी की यात्रा का था और दूसरा बाहुबली की पूजन करते हुए
। अपने को स्वयं बहुत सी सामग्री भगवान को चढ़ाते हुए देखा। दोनों स्वप्न 45 शुभ थे और तीर्थ यात्रा का संयोग प्राप्त होने का उनका फल था।
1 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
HLAHARIHSHASHAN