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आचार्यवर श्री ............ ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो नैवेचं निर्वपामीति स्वाहा।।
तमनाश करता ज्योतिकारक. दीप जगमग जोत ही। अज्ञान तम का नाश होवे, ज्ञेय परकाशक सही।। आचार्यवर श्री ..........
...........|| ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेश्यो दीपं निर्वपामीति स्वाहा।।
चुर दशांगी धूप को ले, अग्नि मांहि जलाय कर। धम्र के मिस कर्म होवे, नष्ट अष्ट उड़ाय कर।।
आचार्यवर श्री .......... .................। ॐ ही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा।।
लेय कर के फल मनोहर, पक्व मिष्ट स पावना। मुझको मिले अब मोक्षफल, ये ही परम शुभ भावना।।
आचार्यवर श्री .......... ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेश्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।।
जल आदि लेकर अर्घकर, सब अष्ट द्रव्य मिलायकर। मांगता हूँ अनर्घ पद मैं अर्घ चरण चढ़ायकर।। आचार्यवर श्री शान्तिसागर के, चरण चित्त लायके।
पूजा रचाऊं भावसेती, शुद्ध मन हुलसाय के।। ॐही आचार्य श्री शान्तिसागरेभ्यः अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
258 PLETERIFIEाना.