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45145199749595454941474545454545467455 का है, यह समझकर कल्याण के अभिलाषी मनुष्य इस नगर की सेवा करते हैं। जा
इस उल्लेख से गिरिदुर्ग का महत्त्व स्पष्ट द्योतित होता है। बलवान शत्र का 1 मुकाबला दुर्गों का आश्रय कर किया जा सकता था क्योंकि अपने स्थान पर स्थित खरगोश भी हाथी से बलवान हो जाता है दत (सन्देशहर)-दूतों को राजाओं का मुख कहा जाता है। गद्यचिन्तामणि के द्वितीय लम्भ में बाण की दूत के रूप में सम्भावना कर दूत को कान में बात कहने वाला तथा हृदय के भेदने में चतुर व्यंजित किया गया है। गुप्तचर-'चारैः पश्यन्ति राजानः' उक्ति प्रसिद्ध है। गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि के अनुसार बड़ी सावधानी के साथ गुप्तचर रूपी नेत्रों को प्रेरित
करने वाले जीवन्धरस्वामी शत्र, मित्र और उदासीन राजाओं के देश में उनके प द्वारा अज्ञात समाचार को भी जान लेते थे।
राजद्रोह-जो व्यक्ति राजद्रोही होता है, वह सभी का द्रोही हो सकता है, ऐसी स्थिति में वह पाँच पापों (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह) का कर्ता होता है। शत्रुविजय-शत्रु अपने मनोरथ की सिद्धिपर्यन्त प्रसन्न करने योग्य होते हैं। अपने शत्रु के कार्यों की प्रबलता और उसके विचार को जानकर प्रतीकार करना चाहिए।" इस प्रकार उत्तम उपायों से प्रसिद्ध मनुष्य कार्य को पूर्ण करने
में रुकावट रहित होते हैं। TE वादीमसिंह की कृतियों का सांस्कृतिक महत्व-स्याद्वादसिद्धि जहाँ विशुद्ध
दार्शनिक कृति है, वहाँ गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि विशुद्ध साहित्यिक कृतियाँ हैं। इन दोनों कृतियों का सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है। इस हेतु स्वतन्त्र अध्ययन अपेक्षित है। इन सब विशेषताओं के कारण वादीभसिंह का व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व महान सिद्ध होता है।
संदर्भ ग्रंथ 1. न्यायकुमुद चन्द्र 2. जैनसाहित्य और इतिहास 3. सत्र चूड़ामणि
4. कादम्बरी 15. गद्यचिन्तामणि
6. मेघदूत
7. अनेकांत मासिक वर्ष 5 TE अध्यक्ष संस्कृत विभाग, वर्धमान कालेज डॉ. रमेशचंद्र जैन TE
विजनौर (उ.प्र.) 卐प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ
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