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"निर्दिरं सकल वेन भुवनः श्रीवर्षमानेन यत, तवं वासवतिना निगदितं जम्बो प्रतिष्यत्व च। शिघेणोत्तर वाग्मिनाप्रकटित पद्नस्य वृचं मुनेः श्रेयः साधुसमाविधिकरणं सर्वोत्तम भगलम।।" यहाँ उत्तरवाग्मी से कीर्तिधर का उल्लेख है।
महाकवि स्वयम्भू ने 'पउमचरित (अपभ्रंश) की रचना रविषेण के ST'पद्मचरित' के आधार पर की है। उन्होंने रविषेण की ग्रन्थ परम्परा का वही TE आधार बताया है, जो रविवण ने। इतना ही नहीं उन्होंने उक्त वर्धमान - जिनेनोक्तः..' को सामने रखकर पद्य भी लिखे हैं ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पद्मचरित का आधार कीर्तिधर मुनि द्वारा रचित TE रामकथा हो। किन्तु यह कीर्तिधर कौन हैं? किस गण/संघ/गच्छ के हैं? :
इनकी रामकथा कौन सी है? यह स्पष्ट नहीं। आचार्यों में भी कीर्तिधर का उल्लेख नहीं मिलता। हमारा अनुमान है कि या तो इन कीर्तिधर की रामकथा उस समय कुछ समय के लिए प्रचलित रही होगी और उसी समय नष्ट हो गई होगी, अथवा हो सकता है वह भविष्य में किसी पुस्तकालय में उपलब्ध हो जावे।
एक और विचारणीय प्रश्न है। रविषेण से पूर्व आचार्य विमलसूरि ने प्राकृत भाषा में 'पउमचरिय' की रचना की, जिनका समय स्वयं उन्हीं के
अनुसार वि. सं. 60 है। रविषेण ने विमलसरि के 'पउमचरिय' के समान ही - सर्गादि के नाम दिये हैं, शैली में भी एकता हो, किन्तु रविषेण ने कहीं भी - विमलसूरि का उल्लेख नहीं किया है।
'पद्मचरित' में आधिकारिक कथावस्तु राम की है। रामकथा जैनों के - समान हिन्दुओं और बौद्धों में भी प्रचलित है। प्रस्तुत काव्य का प्रधान रस । अन्य धार्मिक काव्यों की तरह शान्त है। श्रृंगार, करुण आदि भी अत्यधिक 4- मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। रविषेण अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल हुए हैं। ग्रन्थ की लोकप्रियता के कारण उसके अनुवाद और प्रकाशन भी अनेक हुए हैं।
रविषेणाचार्य बहुश्रुत विद्वान थे। जैन होने के कारण जैन धर्म/साहित्य/दर्शन के तो वे मर्मज्ञ थे ही, हिन्दू पुराणों और शास्त्रों के भी अप्रतिम ज्ञाता थे। स्थान-स्थान पर वैदिक सिद्धान्तों के खण्डन से यह बात स्पष्ट हो जाती है। |प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ TELETELETELETECEIPानारामा
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