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स्थित विविध विषय-कषायों के सर्प को यदि दूर करना है तो एक मात्र उपाय सदधर्म की आराधना ही हो सकती है। रणक्षेत्र में हाथी, घोड़ा एवं भयंकर शत्रुओं से घिरे हुए, भक्त श्री भगवान के स्मरण से विजय प्राप्त करते हैं। यहाँ रणक्षेत्र' अर्थात् संसार। संसार के जीवों को अनेक परपदार्थ पीड़ित TE करते हैं। आत्मा को संसार भ्रमण और सुख-दुख में परेशान करते हैं। परंतु, भक्ति के पुरुषार्थ से साधक आत्मप्रदेश को जागृत करने वाले ये सांसारिक मोह-माया कषाय रूपी हाथी घोड़ों को परास्त कर विजय प्राप्त करके मोक्ष प्राप्ति का विजेता बनता है।
ऐसे संसार-सागर में जहां मगरमच्छ अर्थात पंच पापों से घिरे हए हैं वहाँ भक्त भक्ति रूपी नौका से ही पार हो सकते हैं। यहाँ संसार मोह-माया, लोभ आदि को प्रतिबिंबित करता है और धर्मरूपी नौका, पार कराने का प्रतीक है। मनुष्य का शरीर अनेक रोगों का घर है। जीवन की आशा ही जिनकी
टूट गई है ऐसा व्यक्ति भी भगवान के नाम की औषधि से कामदेव से भी - अधिक सुन्दरता प्राप्त कर लेता है । यहाँ बाह्य शारीरिक रोग जो कि मानसिक
संत्रास, अनियमितता, स्वच्छंदता के प्रतीक के रूप में है, वहीं सच्ची भक्ति औषधि का काम करती है। इसमें आराधना तत्त्व की प्रधानता है। अंत में आचार्य लौह श्रृंखला से जकड़े घायल शरीर की बात करते हैं। इस संदर्भ में वे प्रतीक के माध्यम से कहना चाहते हैं कि संसार के मोहनीय कर्म से उदित बंधन हमें लौह श्रृंखला (बेड़ियों) में जकड़कर निरंतर पीड़ित करते रहते हैं, ऐसे समय में जो प्रभू के नाम-मंत्र का स्मरण करता है वही मुक्त
होता है अर्थात नाम-मंत्र के स्मरण से वह संसार की पीड़ा को भूलकर दृढ़ता 21 से आत्मप्रदेश में लीन अन्तर्मुखी बनता है। पीड़ा से छुटकारा पाकर मुक्ति प्राप्त करता है।
यों तो भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक श्लोक में कोई न कोई नवीन दृष्टि प्रस्तुत की गई है परंतु, ऊपर चर्चा जिनकी की है उन श्लोकों में अधिक प्रतीकात्मक शैली में कवि ने भगवान आदिनाथ के रूप, गुण, अतिशयों का वर्णन किया है, साथ ही संसार, मनुष्य के चंचल स्वभाव, आधि-व्याधिउपाधि, कषाय-विषय-वासना, मोह आदि जो संसार में भटकाने वाले हैं-उनसे मुक्ति का उपाय भगवान की आराधना, ध्यान एवं आत्मचिंतन बताया है।
इस स्तोत्र में कवि ने भक्ति की उत्कृष्टता, उसका प्रभाव एवं मिथ्यात्व का त्याग करके क्रमशः प्रगति पथ पर उर्ध्वगति प्राप्त करना ही मूल उद्देश्य माना है।
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अहमदाबाद
डॉ. शेखरचन्द्र जैन
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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