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है। सांसारिक प्राणी, घर-गुहस्थी में रहने वाला सामाजिक प्राणी सब प्रकार - के दुष्कर्मों से विरत नहीं हो सकता। इसलिए शास्त्रों में सदगृहस्थों के लिए TE | अणुव्रत की व्यवस्था की गई है। ये अणुव्रत पाँच प्रकार के माने गये
हैं-अहिंसा-णुव्रत, सत्याणुव्रत, अस्तेयाणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह-परिमाण
व्रत (इच्छा परिमाणव्रत)। 1 जीवन में और समाज में अपने दायित्वों को निभाते हुए भी दुष्कर्मों LE से बचने के लिये अणुव्रत धारण किये जाते हैं। इन्हें धारण करते समय यह
- संकल्प किया जाता है कि मैं स्थूल हिंसा, स्थूल झूठ, स्थूल चोरी, स्थूल कुशील 51 और स्थूल परिग्रह से बचूंगा। मन, वचन और काय से इन्हें न करूंगा और LEन दूसरों को प्रेरित कर ऐसा कराऊंगा। शास्त्रीय शब्दावली में इसे दो करण,
तीन योग से प्रतिज्ञाबद्ध होना कहा जाता है। करना, कराना और अनुमोदन करना करण कहलाता है तथा मन, वचन और काया की प्रवृत्ति को योग कहा : गया है। अणुव्रत में करण की छूट रहती है। किसी भी व्रत को व्रतधारी अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार एक या दो करण से ग्रहण कर सकता है।
महाव्रत महान् व्रत है। तीर्थंकर आदि महापुरुषों ने राग-द्वेष से मुक्त होने के लिए, जन्म-मरण के बन्धन से छूटने के लिए. मोक्ष-प्राप्ति के लिए F- जिन व्रतों को धारण किया है, वे महाव्रत हैं। ये भी पाँच हैं-अहिंसा, सत्य, .
अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । इन्हें तीन करण, तीन योग से धारण किया जाता है। महाव्रतधारी को श्रमण या साधु कहा गया है। इन्हें "अनगार" भी कहा गया है। क्योंकि इनका घर नहीं होता। ये संसार से सर्वथा विरत होते हैं। महाव्रतधारी को स्थूल, झूठ आदि की छूट नहीं होती। महाव्रत धारण करने वाले को पांचों महाव्रत धारण करने होते हैं। किन्हीं एक दो महाव्रतों का चयन कर वह उन्हें ग्रहण नहीं करता, संपूर्ण रूप से वह अहिंसा, सत्य आदि महाव्रतों को धारण कर पूर्ण सजगता के साथ उनकी परिपालना करता है। एक भी महाव्रत किसी भी रूप में खण्डित होने पर उसकी साधना क्षित हो जाती है। इसीलिए महाव्रत को अखण्ड मोती की उपमा दी हुई है। मोती का मूल्य तभी तक है, जब तक उसमें आब अर्थात् चमक बनी रहती है। चमक के गायब होते ही मोती दो कौड़ी का नहीं रहता। पर अणुव्रत की उपमा सोने की सिल्ली से दी गई है। अपने पास जितना रुपया-पैसा है, उससे जितना सोना आये, उतना खरीदा जा सकता है। इसी प्रकार अणुव्रतधारी
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ ELEEEEEEEEEEE
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