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हो, प्राकृतिक संतुलन बना रहे, ताकि पर्यावरण प्रदूषण का संकट न आये। 卐 T: इस दृष्टि से अहिंसा अणुव्रत आज के संदर्भ में विशेष उपयोगी और प्रासंगिक
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सत्याणुव्रत में वचनशुद्धि, विश्वसनीयता और प्रामाणिकता को महत्त्व दिया गया है। आज वाणी का संयम कम देखा जाता है। झूठे आश्वासनों
का बाजार गर्म है। झूठे शपथ पत्र, झूठे दस्तावेज, झूठे विज्ञापन प्रायः LE देखने-सुनने में आते हैं। इससे व्यक्ति की साख गिरती है और समाज में
संदेह का वातावरण बनता चलता है। जनतंत्र में प्रायः राजनैतिक पार्टियाँ 1 और नेता झठे आश्वासन देते रहते हैं। वायदे करते रहते हैं। इससे पूरे
राष्ट्र का चरित्र कलंकित होता है। सत्य ईश्वर कहा गया है। सत्य का साक्षात्कार ही महापुरुषों ने जीवन का लक्ष्य माना है। यदि यह सत्य खण्डित
होता है तो इससे हमारा पूरा व्यक्तित्व खण्डित होता है। अतः सत्यव्रतधारी F को चाहिए कि वह विचारपूर्वक बोले, किसी पर मिथ्या दोषारोपण न करे, किसी के मर्म को प्रकट न करे और व्यर्थ न बोले। "बातें कम काम ज्यादा" को व्यवहार में लाये।
अचौर्याणुव्रत आज के संदर्भ में अत्यन्त उपयोगी है। आज का व्यक्ति अर्थ प्रधान हो गया है। येन-केन-प्रकारेण धन एकत्र करना उसने अपना लक्ष्य भी बना लिया है। अधिकांश कानूनों की परिपालना नहीं होती, व्यावसायिक क्षेत्र LF में पग-पग पर अनैतिकता और तस्कर वृत्ति देखी जाती है। चोरी शब्द अत्यन्त
व्यापक है। स्वयं चोरी न करे पर यदि चोर को सहायता दे, चुराई हुई वस्तु खरीदे, राजकीय नियमों के विरुद्ध आदान-प्रदान करे, लेन-देन या माप करे, असली वस्तु दिखाकर नकली वस्तु बेचे, यह सब चोरी है। अचौर्यव्रत के पालन से समाज में नैतिकता का विकास होता है। श्रम के महत्व की प्रतिष्ठा होती है और स्वावलम्बन का भाव जागता है।
ब्रह्मचर्याणुव्रत शारीरिक और आत्मिक शक्ति के संचय और वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ केवल वीर्य-रक्षा ही नहीं है। आत्मिक शक्ति के संचय-संवर्द्धन के लिए की जाने वाली प्रत्येक प्रवृत्ति ब्रह्मचर्य से संबंधित है। इसीलिए शास्त्रकारों ने ब्रह्मचर्य को सभी तपों में श्रेष्ठ तप कहा है। आज ब्रह्मचर्य का तेज युवापीढ़ी में देखने को नहीं मिलता। भोग-विलास के साधन इस स्तर से बढ़ गये हैं कि व्यक्ति अपनी वीर्य-शक्ति
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ