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LE विद्यानन्द ने साधिकार कहा है कि हजार शास्त्रों के सुनने से क्या लाभ है।
केवल इस अष्टसहस्री को सुन लीजिए। इतने मात्र से ही स्वसिद्धान्त और पर सिद्धान्त का ज्ञान हो जायेगा।
आचार्य विद्यानन्द को समस्त दर्शनों का तलस्पर्शी ज्ञान प्राप्त था। जैन वाङ्गमय में भावना, विधि और नियोग की चर्चा सर्वप्रथम विद्यानन्द की अष्टसहस्री और तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में ही विस्तार से देखने को मिलती है। कुमारिल भट्ट भावनावादी हैं। प्रभाकर नियोगवादी हैं और वेदान्ती विधिवादी हैं। इनके ग्रन्थों के सूक्ष्म अध्ययन के बिना भावना आदि का इतना गहन और विस्तृत विवेचन असंभव है। तत्त्वोप्लववाद का पूर्वपक्ष और उसका विस्तार से निराकरण इन्हीं के ग्रन्थों में देखने को मिलता है।
आचार्य विद्यानन्द ने अष्टसहस्री में अनेक प्रसिद्ध दार्शनिकों के ग्रन्थों 7 से नामोल्लेख पूर्वक और बिना नामोल्लेख के भी अनेक उद्धरण दिये हैं। TE तदुक्तं भट्टेन अथवा तदुक्तं लिखकर कुमारिल भट्ट की मीमांसाश्लोकवार्तिक - के अनेक श्लोकों को उद्धृत किया गया है। धर्म कीर्ति के प्रमाण वार्तिक
से अनेक पुलोकों को उद्धत करके उनके सिद्धान्तों की समालोचना की गयी TE है। धर्म कति के टीकाकार प्रज्ञाकर की भी कई बार नाम लेकर समालोचना
- की गये है। भर्तृहरि के वाक्यपदीय से न सोऽस्ति प्रत्ययो लोके' इत्यादि 4 श्लोक, शंकराचार्य के शिष्य सुरेश्वर के वृहदारण्यक वार्तिक से 'आत्मापि PE संदिदं ब्रह्म' इत्यादि श्लोक तथा ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका से भी कई
श्लोक उद्धृत किये गये हैं। महाभारत के वन पर्व से 'तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयोविभिन्नाः' इत्यादि श्लोक उद्धृत है। ज्ञानश्रीमित्र की अपोहसिद्धि से 'अपोहः शब्दलिंगाभ्यां न वस्तु विधिनोच्यते' यह श्लोकांश उद्धृत है। शावरभाष्य से चोदना हि भूतं भवन्त भविष्यन्तम्' इत्यादि तथा 'ज्ञाते त्वर्थेऽनुमानादवगच्छति बुद्धिम्' यह वाक्य उद्धृत है। योगदर्शन से 'चैतन्यं पुरुषस्य स्वरूपम्' तथा 'बुद्धयवसितमर्थं पुरुषश्चेतयते यह वाक्य उद्धृत है। अकलंक देव के न्यायविनिश्चय, प्रमाणसंग्रह आदि ग्रन्थों से अनेक श्लोक उद्धृत हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के पञ्चास्तिकाय से सत्ता सबपयत्था' इत्यादि गाथा की संस्कृत छाया उद्धृत है। तत्त्वार्थसूत्र से अनेक सूत्र उद्धृत हैं। तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक से भी अनेक श्लोकों को उद्धृत किया गया है।
अष्टसहस्री में अनेक दार्शनिकों का नामोल्लेख करके उनके सिद्धान्तों
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ -