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अणुव्रत और महाव्रत : आज के संदर्भ में
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विज्ञान की प्रगति और तकनीकी विकास के कारण भौतिक दृष्टि से 51 IF आज का जीवन अधिक सुविधापूर्ण, खानपान और रहन-सहन के तौर-तरीकों LE
में अधिक सुखी प्रतीत होता है. पर गहराई से देखने में लगता है कि मानसिक रूप से व्यक्ति अधिक दुखी, कुंठित और तनावग्रस्त है। परिवार और समाज में जो स्नेह, सद्भाव और शांतिपूर्ण वातावरण अभीष्ट है, वैसा लक्षित नहीं होता। वैर-विरोध, कलह-क्लेश, ईर्ष्या-द्वेष, शंका-संदेह के कारण जैसा विश्वास, मैत्री-भाव और वात्सल्य होना चाहिए. उसका प्रायः अभाव है। राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीयता, प्रान्तीयता, संकीर्णता और स्वार्थपरता का बोलबाला है। सत्ता, सम्पत्ति, पद-प्रभुता के लिये संघर्ष और प्रतिद्वन्द्वता है, आपाधापी और छीनाझपटी है। अस्थिरता, बिखराव और तोड़फोड़ की प्रवृत्ति हर क्षेत्र में सक्रिय है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर द्रुतगामी यातायात और संचार-साधनों के विकास के कारण राष्ट्र परस्पर जुड़ से गये हैं। समयगत और स्थानगत दूरी कम हई है, पर वैचारिक मतभेद के कारण शीतयुद्ध बराबर चलते रहते हैं। शांति-सम्मेलनों के मंच से विश्व-बंधुत्व, मानवीय एकता और परस्पर स्नेह-संबंधों की बात अवश्य कही जाती है, पर भीतर ही भीतर ईर्ष्या-द्वेष और अविश्वास की आग बराबर धधकती रहती है। कुल मिलाकर कहा जा सकता
है कि वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर - विज्ञान के विकास के कारण जैसा सुन्दर सुख-सुविधापूर्ण, समृद्धिदायक,
स्वास्थ्यप्रद वातावरण बनना चाहिए, वैसा संवेदना के स्तर पर, अनुभूति के
स्तर पर आज दिखाई नहीं देता। - यह सही है कि सभ्यता का रथ बहुत आगे बढ़ा है पर मनुष्य के मन 1 की जो पाशविक वृत्तियाँ हैं, वैयक्तिक स्तर पर उनमें कभी कमी नहीं आई
है। पहले जिन कारणों से क्षेत्र विशेष में जैसे युद्ध होते थे, वैसे आज नहीं । होते, पर आज युद्ध अधिक सूक्ष्म बन गये हैं। अब वे इन्द्व युद्ध के रूप में 4 सीमित क्षेत्र में नहीं लड़े जाते और न उनका प्रभाव युद्ध से संबंधित देश-काल
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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