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रविषेण लोक-परम्परा के भी अशेष ज्ञाता थे। समाज के व्यापारों, पाखण्डों, उपद्रवों, लोक-व्यवहारों का उन्हें सांगोपांग ज्ञान था। समाज में फैली करीतियों से वे अपरिचित नहीं थे। स्थापत्य कला के भी वे पारगामी थे। नारियों के भावालाप, उनकी तरुणाई उत्सवों पर उनकी उक्तियाँ, पुरुषों की वृद्धावस्था, मुख की श्वेतिमा आदि का सजीव वर्णन उन्होंने किया है। वे राजनीति, शकुन, कला, संगीत, ज्योतिष, युद्ध सभी के अद्वितीय वेत्ता थे।
'पद्मचरित' की कथावस्तु को कुल छह खण्डों में विभक्त किया गया है है जिन्हें काण्ड भी कहते हैं। (1) विद्याधर काण्ड (2) जन्म और विवाह काण्ड
(3) वन-भ्रमण काण्ड (4) सीता हरण और अन्वेषण काण्ड (5) युद्ध काण्ड ज(6) उत्तर काण्ड । यद्यपि अनेक विद्वानों ने अन्य भी नाम दिये हैं किन्तु यही
सर्वाधिक प्रचलित नाम हैं। रविषेणाचार्य के निम्न कथन के आधार पर कथा निम्न सात अधिकारों में विभक्त है-(0) लोकस्थिति (2) वंशों की उत्पत्ति (3) वनगमन (4) युद्ध (5) लवणा-कुश की स्थिति (6) भवान्तर निरूपण (7) रामचन्द्र का निर्वाण।
'स्थितिवंशः समुत्पत्तिः प्रस्थान संयुगं ततः। लवणाकुश सम्भूतिर्भवोक्तिः परनिर्वृतिः।। भवान्तरभवैर्भूरिप्रकारैश्चारुपर्वभिः । युक्ताः सप्त पुराणेऽस्मिन्नाधिकारा इमे स्मृताः ।।17
इसके 123 पर्यों में कुल 18023 श्लोक हैं। कथावस्तु का प्रारम्भ अन्य - जैन पुराणों की भाँति ही हुआ है। भ. महावीर के समवसरण में राजा श्रेणिक - ने इन्द्रभूति गणधर को नमस्कार करते हुए उनसे रामकथा जानने की इच्छा 4 प्रकट करने पर उन्होंने यह कथा कही।
'पदमचरित' की कथावस्तु विशाल है. इसकी पूरी कथा वस्तु देना यहाँ सम्भव नहीं अतः हम सभी पर्यों के नाम यहाँ दे रहे हैं, जिनसे कथावस्तु का भी संक्षेप में परिज्ञान हो जावेगा। कोष्ठक में पर्वसंख्या दर्शित है : (1) सूत्रविधानं (2) श्रेणिकचिन्ताभिधानं (3) विद्याधर लोकाभिधानं
(4) ऋषभमाहात्म्याभिधानं (5) राक्षसवंशाभिधानं (6) वानरवंशाभिधानं LE(7) दशग्रीवाभिधानं (8) दशग्रीवाभिधानं (७) बलिनिर्वाणाभिधानं
- (10) दशग्रीव प्रस्थाने सहस्ररश्म्य नरण्य श्रामण्याभिधानं 31 (11) मरुत्तयज्ञध्वंसनपदानुगाभिधानं (12) इन्द्रपराभिधानं (13) इन्द्रनिर्वाणाप्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर ाणी स्मृति-ग्रन्थ
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