________________
1555555555555555555555
4 पाषाण की सरस्वती को मुख से बुला दिया था।
पद्मनन्दि गुराँतो बलात्कार गणाग्रणी।। पाषाणघटिता येन वादिता श्री सरस्वती।।1।। एक अन्य पद्यावली में उनकी निम्न प्रकार स्तुति की गयी है :श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनीन्द्रपट्टे शश्वतप्रतिष्ठ: प्रतिभागरिष्टः । विशुद्ध-सिद्धान्त-रहस्यरत्नः, रत्नाकरो नन्दतु पद्मनन्दि ।।
पदमनन्दि संस्कत के प्रकाण्ड विद्वान थे। राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में इनकी 15 रचनायें उपलब्ध हो चुकी हैं। इन रचनाओं में पद्मनन्दि 11 श्रावकाचार, (2) अनन्त व्रत कथा, (3) द्वादश व्रतोद्यापन पूजा, (4)
देवशास्त्र-गुरुपूजा, (5) नन्दीश्वर पंक्तिपूजा, (6) लक्ष्मी स्तोत्र, (7) पार्श्वनाथ - स्तोत्र, (8) वीतराग स्तोत्र, (9) रत्नत्रय पूजा. (10) भावना चौंतीसी, (11)
परमात्मराज स्तोत्र. (12) सरस्वती पूजा, (13) सिद्ध पूजा. (14) शान्तिनाथ स्तवन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
आचार्य पद्मनन्दि ने बहुत लम्बे समय तक साहित्य एवं संस्कृति की सेवा की और संवत् 1470 के किसी समय पश्चात् आपका समाधिमरण हो गया। क्योंकि संवत् 1470 की इनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमायें टोंक नगर के बाहर की नशियां में विराजमान हैं।
भट्टारक सकलकी भट्टारक सकलकीर्ति का जन्म संवत् 1443 को हुआ था। इनका जन्मनाम पूर्णसिंह था। 14वें वर्ष में ही माता-पिता ने इनका विवाह कर दिया। लेकिन घर गृहस्थी में इनका जरा भी मन नहीं लगा। 26वें वर्ष में इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और नैणवां (राजस्थान) जाकर भट्टारक श्री पद्मनन्दि जी के पास अध्ययन करने लगे। प्रतिभा संपन्न होने के कारण उन्होंने सभी शास्त्रों का शीघ्र ही अध्ययन कर लिया। 34वें वर्ष इन्होंने आचार्य पद धारण कर लिया और अपना नाम आचार्य सकलकीर्ति रख लिया। इन्होंने बागड़ प्रदेश में भट्टारक गादी की स्थापना की और स्वयं भट्टारक कहलाने लगे क्योंकि उस युग में आचार्य से भट्टारक का पद एवं प्रतिष्ठा ऊँची थी। विभिन्न ग्रंथों में भट्टारक सकलकीर्ति जी को निर्ग्रन्थराज, महाकवि, शुद्धचारित्रधारी,
तपोनिधि, निर्ग्रन्थ श्रेष्ठ आदि उपाधियों सेसम्बोधित किया गया है। + आचार्य सकलकीर्ति प्राकृत, संस्कृत के धाकड़ विद्वान् थे। संस्कृत भाषा 1 1454
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ -
F45454545454545454545454545454545
454545454545454545454545454545750