Book Title: Prashammurti Acharya Shantisagar Chani Smruti Granth
Author(s): Kapurchand Jain
Publisher: Mahavir Tier Agencies PVT LTD Khatuali

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Page 510
________________ 555555555555555454545459 LALLE भूयत्येणामिगदा जीवाजीवाय पुण्णपावं च। आसव संवर निज्जरबंधो मोक्खोय सम्मत।। -गाथा नं. 13' अर्थात् भूतार्थ रूप से जाने हुए जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आश्रव, संवर, 4 निर्जराबंध को सम्यकत्व कहते हैं। अर्थात् व्यवहार भूतार्थ नय से जीवाजीवादि पदार्थों को जानना सम्यक दर्शन है। इससे सिद्ध होता है कि व्यवहारनय -1 भी भतार्थ है। सारांश यह कि दृष्टि भेद से ही हम किसी को भूतार्थ या अभूतार्थना कह सकते हैं, सर्वथा नहीं। निश्चय और व्यवहार दोनों का परस्पर विरुद्ध विषय है। अतः अपने-अपने प्रयोग क्षेत्र में वे परस्पर प्रतिसिद्ध होते हैं. सदा । सर्वथा नहीं। नय तो वस्तु का एक अंश है। पूर्ण नहीं है। यदि व्यवहार नया LE वस्तु के एक अंश को जानता है तो निश्चय भी वस्तु के एक ही अंश को LE बताने वाला है। व्यवहार भेदांश को ग्रहण करता है और निश्चय अभेदांश F1 को, किन्तु वस्तु भेदा-भेदात्मक है। आगे चलकर आचार्य कुंद-कुंद ने व्यवहार LE और निश्चय दोनों नयों को पक्षपात कहा है। इसी स्थिति में उनकी दृष्टि से दोनों नय समान हो जाते हैं। मोक्ष प्राप्ति में दोनों नयों का समान स्थान आचार्य कुंद-कुंद स्वीकार करते हैं। वे कहते हैं कि निश्चय नय का आश्रय लेकर मुनि मोक्ष प्राप्त करते हैं। किन्तु जब तक मुनि उस अभेद दशा तक - नहीं पहुंचेगा तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं करेगा, लेकिन इस दशा तक पहुंचने के लिए उसे भेद अर्थात् विकल्प दशा को प्राप्त करना ही होगा अर्थात् व्यवहार नय का आश्रय लेना ही पड़ेगा। इस अभिप्राय को उन्होंने गाथा नं. 72 में निम्न प्रकार से प्रगट किया है। सुद्धो सुद्धादेसोणायत्वो परम भाव दरसीहिं। ववहार देसिदा पुणजेदु अपरमे ट्ठिदा भावे।। इस तरह आचार्य कुंद-कुंद ने अपने कथन को बड़ी सन्तुलित दृष्टि से प्रतिपादित किया है। व्यवहार नय का निषेध नहीं किया अपितु उसे गौण रखा है। यदि व्यवहार का निषेध किया होता तो समयसार के प्रमुख व्याख्याकार आचार्य अमृतचन्द्र दोनों नयों को छोड़ने की बात न कहते | गाथा नं 12 में उनके निम्न श्लोक से प्रगट है। जो जिणमयं पवज्जए सो मा व्यवहार णिच्चयं मुय। एकेण विणा छिज्जइ तित्थम् अण्णेन पुण तच्चम्।। यदि जिनेन्द्र भगवान के मत के पक्षपाती हो तो व्यवहार और निश्चय ICELELE 1464 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ - 19555555

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