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सखी री श्रीरत्नकीर्ति जयकारी अभयनंद पाट उदयो दिनकर, पंच महाव्रत धारी। शास्त्र सिद्धान्त पुराण ए जो सो तर्क-वितर्क विचारी। गोमट्टसार संगीत सिरोमणि, जाणी. गोतम अवतारी। साहा देवदास केरो सुत सुखकर सेजलदे उर अवतारी। गणेश कहे तुमे वंदो रे भवियण कुमति कुसंग निवारी।
भट्टारक रत्नकीर्ति जी के अब तक 38 पद एवं 6 कतियां प्राप्त हो चुकी हैं।
भ. रत्नकीर्ति जी की तरह भट्टारक कुमुदचन्द्र भी आकर्षक व्यक्तित्व के धनी थे। उनके आकर्षक व्यक्तित्व के संबंध में निम्न एक पद ही पर्याप्त होगा
आवो साहेलडी रे सहू मिलि संगे। बांदो गुरू कुमुदचन्द्र ने मनि रंगे। छदं आगम अलंकार नो जांण, चारू चिंतामणि प्रमुख प्रमाण। तेर प्रकार ए चारित्र साहे, दीठडे भवियण जन मन मोहे। साह सदाफल जेहनो तात, धन जनम्यो पदमाबाई मात। . सरस्वती गच्छ तणो सिणगार, बेगूस्युं जीतियो दुर्द्धरमार। महियले मोढवंशो सुविख्यात, हाथ जोडाविया वादी संधात। जो नरनार ए गोर गुण गावे, समयसागर कहे ते सुख थापे।।
श्री कुमुदचन्द्र जी बड़े भारी साहित्यिक भट्टारक थे। साहित्य सजन में वे अधिक विश्वास करते थे, इसलिये एक गीत में अहर्निश छंद-व्याकरण-नाटक-भाण-न्याय-आगम-अलंकार के साथ उनका स्मरण किया गया है। इनकी अब तक 28 छोटी-बड़ी रचनायें एवं 30 से भी अधिक पद मिल चुके हैं। खोज करने के पश्चात् और भी कृतियां अथवा पद मिलने की संभावना है।
भट्टारक जगत्कीर्ति जी संवत् 1746 में चांदखेड़ी में विशाल पंचकल्याणक के प्रतिष्ठाचार्य म. जगत्कीर्ति आमेर गादी के भट्टारक थे। उनके संबंध में निम्न उल्लेख मिलता है:
"संवत् 1746 के साल भ. जगत्कीर्ति के बारे में चांदखेड़ी में किशनदास जाधरवाला भगवान को रथ चलाओ। कोटा बूंदी का महाराज दौन्यू लेर चाल्या।
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प्रशममुर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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