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(90) मथुरोपसर्गाभिधानं (91) शत्रुघ्नमवानुकीर्त्तनं (92) मथुरापुरीनिवेश कृषिदानगुणोपसर्ग हननाभिधानं ( 93 ) मनोरमालं भाभिधानं (94) रामलक्ष्मणविभूतिदर्शनीय - मिधानं (95) जिनेन्द्रपूजादोहदाभिधानं (66) जनपरीवादचिन्ताभिधानं ( 97 ) सीतानिर्वासनवि- प्रलापवज्रजंधाभिधानं (98) सीतासमाश्वासनं (99) रामशोकामिधानं (100) लवणाकुशोदद्भवामिधानं (101) लवणांकुशदिग्विजयकीर्तनं (102) लवणांकुशसमेत युद्धाभिधानं (103) रामलवणांकुशसमागमाभिधानं (104) सकलभूषणदेवागमनाभिधानं (105) रामधर्म - श्रवणाभिधानं (106) सपरिवारवामदेवपूर्वभवाभिधानं (107) प्रब्रजितसीताभिधानं (108) लवणांकुशपूर्वभवाभिधानं (109) मधूपाख्यानं (110) कुमाराष्टकनिष्क्रमणाभिधानं ( 111 ) प्रभामंडलपरलोकाभिधानं (112) हनुमान्निर्वेदं (113) हनुमान्निर्वाणाभिधानं ( 114 ) शक्रसुरसंकथाभिधानं (115) लवणांकुशतपोभिधानं (116) रामदेवविप्रलाप (117) लक्ष्मणावियोग विभीषण संसारस्थितिवर्णनम् (118) लक्ष्मणसंस्कारकरणंकल्याणमित्रदेवाभिगमाभिधानं (119) बलदेवनिष्क्रमणाभिधानं (120) पुरसंक्षोभाभिधानं (121) दानप्रसंगामिधानं (122) केवलोत्पत्यभिधानं (123) बलदेवसिद्धिगमनाभिधानं । आचार्य रविषेण की रामकथा में प्रचलित हिन्दू एक-रषा की अपेक्षा ये विशेषतायें हैं :
रामलक्ष्मण और रावण को जैन परम्परा में त्रेसठ शलाका पुरुषों ( महापुरुषों) में स्थान दिया गया है। पद्मचरित में ये तीनों क्रमशः आठवें बलदेव", नारायण और प्रतिनारायण के रूप में वर्णित हैं। हनुमान, सुग्रीव वानर नहीं, विद्याधर थे, उनके छत्र आदि में वानर का चिन्ह होने से वे वानर कहलाये 122 राक्षस द्वीप के रक्षक राक्षस कहलाये, इन्हें राक्षसवंशीय भी कहा गया है 124
रावण का नाम दशानन उसकी माला के मौक्तिकों में मुंह के नौ मणि प्रतिबिम्ब होने से पड़ा ।25 सीता जनक की औरस कन्या थी। उसका एक भाई था, जिसका नाम भामण्डल था । 26
राम दशरथ की आज्ञा से नहीं स्वेच्छा से वन गये ।" वालि स्वयं लघु भ्राता सुग्रीव को राज्य देकर दिगम्बर मुनि हो गया, राम ने उसे नहीं मारा। रावण ने अनन्तवीर्य केवली के पास किसी स्त्री से उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग न करने का व्रत लेने के कारण सीता का शीलभंग नहीं किया ।"
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति ग्रन्थ
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