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$145146147454545454545454545454545 'मस्तकन्यस्तह स्तांजलिनिवहनिभेन भगवन्तमर्चयितुमाकाशेऽपि कमलवन ' TE मापादयतेव भव्यलोकेन भासितोद्देशस्य..... ||
-ग. चि., प्रथमो लम्भः पृ. 83-85 सूर्यास्त का वर्णन करता हुआ कवि कहता है-इसी बीच सूर्यास्त हो गया सो ऐसा जान पड़ता था मानों इस अत्यधिक भयङ्कर वृत्तान्त को देखने के लिये असमर्थ होता हुआ वह समुद्र के मध्य में डूब गया था। पश्चिम दिशा में सन्ध्या की लालिमा दिखने लगी, उससे ऐसा जान पड़ता था मानो राजा के मरण को साक्षात् देखने वाली पश्चिम दिशा के हृदय में शोक रूपी अग्नि ही भभक उठी थी। दिशाओं में निरन्तर अन्धकार फैल गया, उससे ऐसा जान पड़ता था मानों राजा की प्रिय वल्लभा को मनुष्य न देख सकें, इस उद्देश्य 卐 से काल ने एक कनात ही लगा दी थी।
वादीभसिंह ने मानवीय सौन्दर्य कस साङ्गोपाङ्ग चित्रण किया है। सुभद्र सेठ जीवन्धर कुमार को देखकर विचार करता है
जो अत्यन्त प्रगल्भ और मधुर दृष्टि के विक्षेप की लीला से असामयिक कमलवन के विकास की शोभा को दिखला रहा है, जिसकी भृकुटी रूपी लता चातुर्य की नृत्यविद्या से सुन्दर है, जिसके मूंगा के समान श्वेत रक्त ओष्ठ 4
दाँतों की कान्ति रूपी चाँदनी से व्याप्त हैं, जिसके कपोल साफ किए हुए । - स्वर्णनिर्मित दर्पण के समान हैं. जो सीधी, ऊँची, कोमल एवं लम्बी नाक से
सहित हैं, जिसके कण्ठ की रेखायें, आलिंगन को प्राप्त लक्ष्मी की भुजलता के मार्ग का अनुसरण कर रही हैं, जिसके कर्णपाश कन्धों से सटे हुए हैं, जिसकी मनोहर कन्धों से युक्त भुजलतायें पराक्रम का शिविर लगाने के लिये खड़े किए हुए खम्भों के समान हैं........
वादीमसिंह की दृष्टि प्रकृति के विभिन्न रूपों को देखने में रमी हैं। तदनुसार उन्होंने प्रकृति के अनेक रमणीय रूपों का वर्णन किया है। गद्य चिन्तामणि के षष्ठ लम्भ का ग्रीष्म वर्णन तथा सप्तम लम्भ का वर्षावर्णन प्राकृतिक छटा से व्याप्त है। चन्द्रोदय का वर्णन करते हुए कहा गया है
क्रमेण च मदनमहाराजश्वेतापत्रे रजनीरजतमाटके स्फटिकोपल LE घटित मदनशरमार्जन शिल्लशकलकल्पे पुष्पबाणाभिषेक पूर्णकलश्मयमाने सर्वजनानन्द कारिणि रागराजप्रियसहृदि राजति रोहिणीरमणे......।
'क्रम क्रम से जो मदनरूपी महाराज का सफेद छत्र था. रात्रि रूपी
क्रम क्रम
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प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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