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जो स्नेह प्रयोग-प्रीति का प्रकृष्ट संयोग (पक्ष में तेल का संयोग) दशा-अवस्था (पक्ष में बत्ती) और पात्र व्यक्ति (पक्ष में भाजन) की अपेक्षा न कर अज्ञानान्धकार को नष्ट करता है, ऐसा सज्जन रूपी श्रेष्ठ रत्नमय दीपक
मार्ग को प्रकाशित करने के लिए नहीं होता तो निश्चय से जनता सन्मार्ग TE में गमन करने वाली नहीं होती। वादीमसिंह के काव्य में राजनीति
वादीभसिंह राजनीतिक विचारों में परिपक्व थे। उनके काव्य के TE अध्ययन से हमें राजनीति सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण सूचनायें प्राप्त होती हैं। यहाँ
उनके राजनैतिक विचारों पर प्रकाश डाला जाता हैराज्य-राज्य, योग और क्षेम की अपेक्षा विस्तार में तप के समान है; क्योंकि तप तथा राज्य से सम्बन्ध रखने वाले योग और क्षेम के विषय में प्रमाद होने पर अधः पतन होता है और प्रमाद न होने पर भारी उत्कर्ष होता है। राजा का महत्त्व-राजा के द्वारा समस्त पृथ्वी एक नगर के समान रक्षित
होने पर राजन्वती (श्रेष्ठ राजा वाली) और रत्नसू (रत्नों की खान) हो जाती ा है। राजा जन्म को छोड़कर सब बातों में प्रजा का माता, पिता है, उसके
सुख और दुःख प्रजा के आधीन हैं। उत्तम राजा से युक्त भूमि सुख देती - है। राजा अधःपतन से होने वाले विनाश से रक्षा करता है। अतः संसार की । स्थिति रहती है. ऐसा न होने पर संसार की स्थिति नहीं रह सकती है । राजा LS की आज्ञा से भूमण्डल पर कहीं से भी भय नहीं रहता है। राजा की आज्ञा
के विपरीत प्रवृत्ति करने पर सच्चरित्र व्यक्तियों का भी चरित्र स्थिर नहीं रहता है। इस लोक में राजा लोग देवों की और प्राणियों की भी रक्षा करते हैं, किन्तु देव अपनी भी रक्षा नहीं करते हैं, इसलिए राजा ही उत्तम देवता है। इस संसार में देव देवों से डरने वाले प्राणी को ही दुःख देते हैं, किन्तु राजा राजद्रोहियों के वंश और धन दौलत आदि को उसी समय नष्ट कर देता है। अर्थीजनों के जीवन के उपाय को और तिरस्कार करने वालों के नाश को करने वाले राजा अग्नियों के समान सेवन करने योग्य हैं। अर्थात् राजा अपने इच्छित कार्य के लिये प्रार्थना करने वालों की तो इच्छा पूर्ण कर देते हैं, किन्तु अपमानादि करने वालों का नाश कर देते हैं. अतः जिस प्रकार अग्नि
का डरकर सेवन किया जाता है, उसी प्रकार राजा की सेवा भी डरकर करना 31 चाहिए। राजा लोग चूंकि प्राणियों के प्राण हैं, अतः राजाओं के प्रति किया प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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