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1 हुआ अच्छा और बुरा व्यवहार लोक के विषय में किया हुआ व्यवहार ही होता । LF है। राजा लोग समस्त देवताओं की शक्ति का अतिक्रमण करने वाले होते LE
हैं। जो देवताओं का अपमान करता है, वह परभव में विपत्ति को प्राप्त होता है और नहीं भी होता है, किन्तु जो राजा के विषय में मन से भी विपरीत चेष्टा करना चाहते हैं, उन पर विचार करते ही विपत्ति टूट जाती है। समस्त सम्पत्ति के साथ राजद्रोही के कुल का संहार एक साथ हो जाता है. दूसरे
लोक में भी उस प्राणी की अधोगति होती है। अविवेकी मनुष्य के यातायात TE से जो खुदा हुआ है, अपयश रूपी कीचड़ के समूह से जो गीला है, जो दोनों - ओर फैलते हुए दुःखरूपी करोड़ों काँटों से व्याप्त है, समस्त मनुष्यों के विद्वेष
रूपी साँपों के संचार से जो भयङकर है और अनन्त निन्दा रूपी दावाग्नि + TE से जो व्याप्त है, ऐसे राजविरुद्ध मार्ग का सेवन वे ही लोग करते हैं, जो
स्वभाव से मूढ़ हैं। ऐसे मनुष्य ही सौजन्य को छोड़ते हुए, समस्त दोषों का 4 संग्रह करते हुए, कीर्ति को दूर हटाते हुए, अपकीर्ति को स्वीकार करते हुए, TE किए हुए कार्य को नष्ट करते हुए. कृतघ्नता को चिल्लाते हुए प्रभुता को TE
1 छोडकर, मूर्खता को अपनाकर, गौरव को दूर कर, लघुता को चढ़ाकर, अनर्थ 4 को भी अभ्युदय, अमङ्गल को भी मङ्गल और अकार्य को कार्य समझते
हैं। यथार्थ में राजा गर्भ का भार धारण करने के क्लेश से अनभिज्ञ माता, जन्म की कारणमात्रता से रहित पिता, सिद्धमातका (वर्णमाला) के उपदेश के क्लेशरहित गुरु, दोनों लोकों का हित करने में तत्पर, बन्धु, निद्रा के उपद्रव
से रहित नेत्र, दूसरे शरीर में संचार करने वाले प्राण, समुद्र में न उत्पन्न होने 2ी वाले कल्पवृक्ष, चिन्ता की अपेक्षा से रहित चिन्तामणि. कुल परम्परा की आगति
के जानकार, भक्तों के जानकार, सेवकों के कृपापात्र. व्रज की प्रजा की रक्षा 5 करने वाले, शिक्षा के उद्देश्य से दण्ड देने वाले शत्रुसमूह को दण्डित करने 21 वाले होते हैं। 4 राजा के गुण-वादीमसिंह ने राजा के निम्नलिखित गुणों का उल्लेख किया
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1. वीरता-राजा को वीर होना चाहिए, क्योंकि यह पृथ्वी वीर मनुष्यों के द्वारा LE भोगने योग्य होती है।
2. त्रिवर्ग का अविरोध रूप से सेवन-यदि परस्पर विरोध के बिना धर्म, अर्थ
और काम सेवन किए जाते हैं तो बाधारहित सुख मिलता है और क्रम से 51 प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर जणी स्मृति-ग्रन्थ 45454545454545454545454545454545
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