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मंत्रिपरिषद् और उसका महत्त्व-मन्त्रवित् राजा को मन्त्रशाला में मंत्रियों के
साथ विचार करना चाहिए। विचार किए बिना किसी कार्य का निश्चय नहीं करना चाहिए तथा (किसी कार्य के विषय में) निश्चय हो जाने पर मंत्रणा नहीं करना चाहिए। मंत्रियों के वचनों का उल्लंघन करना अभाग्य को निमंत्रण देता है। समय आ पड़ने पर अपने स्वामी के प्रति गाढ़ भक्ति रखने वाला सचिव (मंत्री) अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करता है और अपने प्राणों का नाश करने वाले वचन बोलता है। गद्यचिन्तामणि से ज्ञात होता है कि राजा के प्रति निष्ठा रखने वाले कितने ही मंत्रियों को मार डाला गया और कितने ही को काले लोहे की बेड़ियों से बद्धचरण कर चोर के समान कारागृह में डाल दिया गया मंत्री के गुणों से प्रभावित होकर कभी-कभी राजा उन पर शासन का भार रखकर अपने दिन सुखपूर्वक बिताते थे। इसका परिणाम अच्छा और कभी-कभी बुरा भी होता था। सत्यन्धर राजा द्वारा काष्ठागार के ऊपर शासन का भार रखना उनकी मृत्यु और राज्यापहरण रूप अनिष्ट का कारण बना।
गद्यचिन्तामणि के प्रथम लम्भ में काष्ठागार के गुणों का वर्णन करते हए कहा गया है-राजा सत्यन्धर काष्ठाङ्गार नामक उस मंत्री पर राज्य का भार रखने को तैयार हो गया, जिसने अपने स्वभाव से तीक्ष्णबुद्धि के द्वारा इन्द्र के पुरोहित वृहस्पति को तिरस्कृत कर दिया था, जो राजनीति के मार्ग को अच्छी तरह जानता था। सफलता को प्राप्त हुए साम आदि उपायों के द्वारा जिसका यश बढ़ रहा था. पराक्रम रूप सिंह के निवास करने के लिए जो चलता फिरता पर्वत था, गाम्भीर्य गुण से जिसने समुद्र को निन्दित कर दिया था, अपनी स्थिरता से जिसने कुलाचल की खिल्ली उड़ाई थी, जिसका मन वज के समान कठोर था, जो संकट के समय भी खेदखिन्न नहीं होता
था, जो समस्त शत्रुदल पर आक्रमण करने को तैयार बैठा था एवं अनत्साह LE को जिसने दूर भगा दिया था। T: उपर्युक्त विवरण से मंत्रियों के निम्नलिखित सामान्य गुणों पर प्रकाश
। पड़ता है151. तीक्ष्ण बुद्धि होना। 12. राजनीति के मार्ग को अच्छी तरह जानना।
3. साम आदि उपाय से सफलता प्राप्त कर यश की वृद्धि करना।
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प्रसममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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