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1545454545454545454545454545 7 शृण्वन्ति, नादितेऽपि नरेन्द्रत्वे मन्त्रिकृत्यं न सहन्ते। तथा C महाबलान्वेविणोऽप्यबलान्वेषिणः, प्रतापार्थिनोऽप्यसोढव्यापिनः, सश्रुतयोऽस्यश्रुतयः, -
अगस्पृहा अप्यनगस्पृहाः, अभिषिक्ता अप्यनाभावाः, जडसंसक्ता 51 अप्यूष्मलस्वभावाः, सुलोचना अप्यदूरदर्शिनः, सुपादा अपि स्खलितगतयः, 7 TE सुगोत्रा अपि गोत्रोन्मूलिनः, सुदण्डा अपि कुटिलदण्डाः, सिंहासनस्थिता अपि न
पतिताः, हिंसा प्रधानविधयोऽपि मीमांसाबहिष्कृताः, ऐश्वर्यतत्परा अपि न्यायपराङ्मुखाश्च जायन्ते।
-ग.चि., द्वितीय भाग पृ. 113 अर्थात् राजाओं का जो स्परूप है, उसके वर्णन करने में इन्द्र को भी असंख्य मुखों का धारक होना चाहिए। यथार्थ में उनमें राजमाव-चन्द्रपना होने पर भी वे सत्-नक्षत्रों से सेवित नहीं होते। परिहार पक्ष में राजा होने पर भी सत्-सज्जनों से सेवित नहीं होते। गोपतित्व-गायों का पतिपना रहते हुए भी वे वृष-बैल शब्द को नहीं सुनते-गायों का पति वृष-बैल कहलाता है पर वे
गायों के पति होकर भी वृष-बैल शब्द को नहीं सुनना चाहते । (परिहार पक्ष - में-गोपतित्व-पृथिवीपतित्व-पृथिवी का स्वामित्व होने पर भी वे वृष-धर्म शब्द । को नहीं सुनते-उन्हें धर्म का नाम सुनते ही चिढ़ उत्पन्न होती है।
नरेन्द्रपना-विषवैद्यपना घोषित होने पर भी अपने आपको नरेन्द्र-विषवैद्य घोषित करके भी वे मन्त्रिकृत्य-मन्त्रवादियों के कार्य को सहन नहीं करते। (परिहार पक्ष में-नरेन्द्रपना-राजपना घोषित होने पर भी अपने आपको नरेन्द्र-राजा -- घोषित करके भी वे मंत्रिकृत्य-मंत्रियों के कार्य को सहन नहीं करते। वे महाबलान्वेषी अत्यन्त बलवानों की खोज करने वाले होकर भी अबलान्वेषी-निर्बलों की खोज करने वाले हैं (पक्ष में अबला-स्त्रियों की खोज करने वाले हैं)।। प्रतापार्थी अत्यधिक ताप के इच्छुक होकर भी असोढप्रतापी अत्यधिक ताप से युक्त पदार्थों को सहन नहीं करने वाले हैं (पक्ष में-प्रताप-तेज के इच्छुक होकर भी अन्य प्रतापी तेजस्वी मनुष्यों को सहन नहीं करने वाले हैं)। सश्रुति-कानों । से सहित होकर भी अश्रुति-कानों से रहित हैं (पक्ष में सश्रुति-कानों से सहित LE होकर भी अश्रुति-शास्त्रों से रहित हैं)। अंगस्पृह-शरीर में स्पृहा-इच्छा रखने वाले होकर भी अनंगस्पृह-शरीर में स्पृहा नहीं रखने वाले हैं (पक्ष में 51 अंगस्पृह-शरीर में स्पृहा रखने वाले होकर भी अनंगस्पृह-काम में इच्छा रखने वाले है)। अभिषिक्ति-जल के द्वारा अभिषेक को प्राप्त होने पर भी अनाभाव-आर्द्रपन-गीलापन से रहित हैं (पक्ष में अभिषेक को प्राप्त होने पर
प्रशममूर्ति आचार्य शान्तिसागर छाणी स्मृति-ग्रन्थ
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